कविता

कैंसर

थोडा-थोडा करके
मेरा शरीर काँप रहा है
नर्सें आ रहीं हैं
सुइयाँ ले रही हैं
और कुछ दिनों में
मेरे बाल झड़ने लगेंगे
कैंसर मुझे
निगलता जा रहा है
रणसिंह आराच्चिगे बिगुँँनि उत्पला, श्री लंका