इंदौर से मनावर की दूरी 125 किमी है।तहसील मनावर के समीप 2 किमी की दूरी पर काली किराय है।जहाँ पर मानता गणेश मंदिर निर्मित है।भगवान गणेशजी की मूर्ति 275 वर्ष पूर्व कालूजी लोहार को मान नदी में मिली थी।जिसे उन्होंने देवली बनाकर स्थापित की।वर्तमान में मंदिर समिति द्वारा भव्य मंदिर, सुंदर बगीचा,एवं हनुमानजी,शिवजी की मूर्ति स्थापित की।शिव की मूर्ति मान नदी जो मंदिर के ठीक तकरीबन 100 फिट नीचे प्रवाहमान है।वहाँ चट्टानों के नीचे स्थापित है।चट्टानों से शिव के ऊपर प्राकृतिक रूप से जल अभिषेक होता रहता है। मानता गणेश में जो मानता मानी जाती वो अवश्य पूरी होती है।शिव भक्ति का प्राकृतिक, सुंदर स्थल में ॐ शिवाय नमस्तुम्भयम के मंत्र के साथ भक्त भजन,पूजन कर मनोकामना को पूर्ण करते है।भगवान गणेश के बारे में विभिन्न ग्रंथो में उनकी महत्ता का वर्णन मिलता है |भगवान गणेश देवो के देव महादेव शिव के पुत्र हैं। भगवान गणेश की पत्नी का नाम रिद्धि और सिद्धि है। रिद्धि और सिद्धि भगवान विश्वकर्मा की पुत्रियां हैं। भगवान विश्कर्मा *वास्तु ग्रंथो के रचनाकार है ! भगवान विश्वकर्मा को निर्माण के भी देवता माने जाते हैं ! *निर्माण के देवता भगवान विश्वकर्मा भगवान गणेश के ससुर हैं ! इसलिए भी गणेश जी का वास्तु शास्त्र के निराकरण में प्रमुख भूमिका है !भगवान गणेश नई शुरुआत, समृद्धि, बुद्धि और सफलता के देवता और जीवन से बाधाओं को दूर करने वाले भगवान !भगवान गणेश के अन्य नाम
गणपति, विनायक, गजानन, गणेश्वर, गैरीनंदन, गौरीपुत्र, श्री गणेश, गणधिपति, सिद्धिविनायक, अष्टविनायक, बुद्धिपति, शुभकर्ता, सुखकर्ता है |निवास स्थान:गणेश लोक है अ स्त्र त्रिशूल, तलवार, अंकुश, पाश, मोदक और परसु है |प्रतीक स्वास्तिक और मोदक है दिवस बुधवार,जीवनसाथी सिद्धि और रिद्धि है | माता-पिता भगवान शिव
देवी पार्वती भाई-बहन भगवान कार्तिकेय ( बड़े भाई ) , भगवान अयप्पा ( बड़े भाई ) , देवी अशोकसुन्दरी ( बड़ी बहन ) , देवी ज्योति ( बड़ी बहन ) और मनसा देवी ( बड़ी बहन )संतान शुभ (बड़ा बेटा “शुभता का प्रतीक”), लाभ (छोटा बेटा “लाभ का प्रतीक”), और मां संतोषी (बेटी “संतुष्टि की देवी”),सवारी चूहा (मुशक)शास्त्र गणेश पुराण, शिव महापुराण और मुदगल पुराण| भगवान गणेशजी की मूल आरती विभिन्न प्रदेशो में अलग अलग रूप से गए जाती है | इसके अ लावा कवियों द्धारा भी रचित की जाती है | ऐसी ही आरती मनावर जिला धार (मप्र ) के वरिष्ठ कवि श्री शिवदत्त जी “प्राण ” ने लगभग 60 वर्ष पूर्व गणेश जी की स्वरचित आरती लिखी थी जो पूरे मनावर एवं आसपास के क्षेत्रों में संगीत के साथ आज तक ये ही आरती गणेशउत्सव पर गाई जाती है-
आरती गजानन जी की ,पार्वती नंदन शिवसुत की ।
गले में मोतीयन की माला ,साथ है ऋद्दि-सिद्दि बाला ।
वाहन को मूषक है काला ,शीश पर मुकुट चन्द्र वाला ।
चलो हम दर्शन को जावें , पूजा की वस्तु को भी लावें ।
पूजन कर साथ 2 नमाऊँ माथ 2 जोड़कर हाथ 2
कहो जय गोरी नंदन की ,पार्वती नंदन शिवसुत की
आरती गजानन जी की ……………
हाथ में अंकुश और फरसा ,विनय कर सब जगधरी आशा ।
करेंगे प्रभु सब दुःख को नाशा ,कृपा करी पूरन हो आशा
के सुनकर उत्सव गणपति को ,के सुर नर दौड़े दर्शन को ।
जावें सब साथ 2 पुष्प ले हाथ 2 ,दृष्टि करी माथ 2
कहो जय जय जय गणपति जी की ,पार्वती नंदन शिवसुत की।
आरती गजानन जी की. ………..
केशव सुत शरण है चरण में ,मण्डली बाल समान संग में ।
विनय कर दीन -हीन स्वर में ,सुखी रखों जनता को जग में
भारत माँ के है हम सब लाल, चिरायु करों इन्हें गणराज
विनय के साथ 2 नमाऊँ माथ 2 जोड़कर हाथ
करों इच्छा सेवकों की ,की पार्वती नंदन शिवसुत की ।
आरती गजानन जी की ……………