लघुकथा – जूठन
धनराज बैलगाड़ी लेकर खेत जाने की तैयारी में था। अपने दोनों बैलों को कोटना में पानी भरकर भूसा खिला रहा था। वैसे कोटने में रात्रि भोजन का बचा जूठन व पानी था ही; फिर भी उसे कोटने में पानी कम लगा। उसने तुरंत बोरिंग से पानी लाकर कोटने को भरा।
कुछ समय पश्चात धनराज का दस बरस का नाती नाश्ता करके हाथ-मुँह धोया; और मुँह में पानी लेकर कोटने में कुल्ला कर दिया।धनराज ने देख लिया। उसने अपने नाती को जोरदार झिड़की लगाई। दोनों बैल धनराज को अपलक देखने लगे।
— टीकेश्वर सिन्हा “गब्दीवाला”