मालवी बोली “मौन शब्द बी मुखर वे कदी ” काव्य संग्रह में रचनाकार मालवी बोली की वरिष्ठ साहित्यकार नारायणी माया मालवेंद्र बदेका ने एक नया काव्य प्रयोग किया है-आकार / मांडना कला /सुन्दर रेखांकन से लघु मालवी कविताए अपने भाव का प्रत्यक्ष प्रमाण दर्शाती है साथ ही सुन्दर आवरण भी शीर्षक के अनुरूप है | काव्य रचनाओं में मालवी बोली के शब्दों का बेहतर समावेश एक सम्मोहन पैदा करता है । नारायणी माया मालवेंद्र बदेका ने अपने परिवार के सदस्यों को महत्व दिया है जो की क़ाबिले तारीफ है । संग्रह की 80 मालवी कविताओ की दुनिया में प्रेरणा संदेश से बताया है कि माता -पिता से ही जिंदगी जीने का सही सलीका सीखा जा सकता है -“माँ री ममता रो कई मोल कोनी /पिता रे परेम भी कोई तोल कोनी ,माँ रा पल्ला री ठंडी छाया भुलाती कोनी /पिता री काठी पकड़ी आंगली छूटे कोनी “|
मालवी कवित्री का नाम साहित्य क्षेत्र में मालवी बोली की साहित्य की विधा में मधुर व्यवहार से अपनी अलग पहचान बना चूका है ।मिलनसार व्यक्तित्व से साहित्य कृतियों को उपहार स्वरूप देकर,मीठी वाणी से मालवा की मिठास का और भी मान बढ़ाने में अपनी अहम भूमिका निभाता आ रहा है ।आपकी मालवी बोली की सतत साहित्य सेवा के लिए हार्दिक बधाई ।
देखा जाये तो नारायणी माया मालवेंद्र बदेका की काव्य कृतियाँ ,संजाबाई,म्हारी संजा काव्य ,लघु कथा संग्रह तो पहले ही प्रसिद्धि पा चुके है ।आपने काव्य मंचो पर बेहतर माध्यम से कई अहम मुद्दों को भी उठा कर लोगों का ध्यान समस्याओं के समाधान और भी आकर्षित करवाया है ।
कवित्री नारायणी माया मालवेंद्र बदेका की हर कविता दमदार है और दिल को छू जाने वाली है यकीं न हो तो इन पंक्तियों को पढ़े तो एक अलग ही सुकून मिलेगा -“आज थारी याद आवी ,कदी आवेगा तू /आँख म्हारी भरियाई कदी आवेगा तू | भुवा,मासी ,बेना अईगी ,कदी आवेगा तू /राखी भी आवा वारी हे कदी आवेगा तू “|
मालवी बोली की वरिष्ठ साहित्यकार नारायणी माया मालवेंद्र बदेका का मालवी रचनाओं का संग्रह लोकभाषा के आधार को मजबूत करता ही है साथ संग्रह मन में भी मिठास घोल देता है | मालवी बोली की तासीर का असर है | मीठी बोली ऐसी की मानों शहद घुली हो | बोलियों को बचाने में ये अंक महत्व पूर्ण भूमिका अदा करता है | माया मालवेंद्र बदेकाजी बातचीत की सादगी उनकी रचनाओं में झलकती है | झलक निगम सांस्कृतिक न्यास उज्जैन प्रकाशक ने एक नई छाप छोड़ी है |संपादन जेड श्वेतिमा निगम प्रशंसनीय है | सम्पादकीय -जेड श्वेतिमा निगम ने मालवी बोली में कहा है कि “लोकभाषा लोकमन को झरनो ही तो है ,विचारहोण की कल्पनाशीलता ऊंचाई पे पोची के झरना की बूंदा जसी कागजी लिबास में अवतरित होती रेवे है |
माया मालवेन्द्र बदेका ने बड़े ही खूबसूरत तरीके से मालवी संग्रह पर अपनी बात रखी साथ ही हर पक्तियों की बेहतर ढंग से व्याख्या की जो तारीफे काबिल है | ‘ रुत सावण री ,परित मनभावन री /नेह री डोर बाँधी झूला-झूला /छई हरियाली हे घटा कारी -कारी हे /नेह री डोर बाँधी झूला-झूला “| संदेश के रूप में पूर्व रंग में डॉ भगवतीलाल राजपुरोहित,मालवी की मीठी डली कवितावा -डॉ पुराण सहगल ,ह्रद्य की तरलता का सागर लिए नारायणी माया की लोक रस में डूबी कविताएँ -डॉ शैलेन्द्रकुमार शर्मा एवं आपती ,आपणी वात -श्रीमती माया बधेका मालवी बोली के काव्य संग्रह में बड़ी खूबसूरती से रखी |
“मौन शब्द बी मुखर वे कदी “संग्रह में80 मालवी बोली की काव्य रचना अलग अलग विषयों को लेकर रची गई है | मालवी कविताएं एक से बढ़कर एक है | और विभिन्न विषय हास्य के संग है | मालवी बोली की पठनीयता को बढ़ाये जाने के सतह मालवी बोली के विलुप्त हुए शब्दों को जीवित रखने की क्षमता रखते है । ने साहित्य के क्षेत्र में ये कर दिखाया है। उनके सम्मान का परचम सदा लहराता उन्हें सम्मान मिलते रहे यही हमारी कामना है।”मौन शब्द बी मुखर वे कदी ” काव्य संकलन १००% दिलों में जगह बनाएगा इसमें कोई शक नहीं है। हमारी यही शुभकामनाए है ।संग्रह बोली के हित में अवश्य परचम लहराएगा |
समीक्षक — संजय वर्मा “दृष्टि”
लिखवा वाली -श्रीमती माया बदेका “
144 ,गुलमोहर ग्रीन्स इंदौर रोड उज्जैन मप्र
प्रकाशन -झलक निगम सांस्कृतिक न्यास उज्जैन
चित्रावली – रुचिर प्रकाश निगम
सम्पादन – जेड श्वेतिमा निगम