लघुकथा

गुमराह

वॉशरूम से निकला तो माँ को फोन स्क्रॉल करता देखा। स्वयं के सर पर टपली मारी कि फोन लॉक करना क्यों भूला? डरा हुआ इतना ही कह पाया, “माँ! युवा बच्चों के फोन चेक करना निजता एवं शिष्टाचार के खिलाफ है!”

“तेरी हरकत युवाओं जैसी होती तो शिकायत न होती! बड़ी मशक्कतों से छोटी सी नौकरी मिली है तुझे, खुश थी मैं। तेरे जीवन में कोई लड़की है या नहीं, तेरे फोन से ही पता चलता? पर यहाँ तो कुछ और ही भरा पड़ा है! मन करता है तुझे चप्पल से पीटूँ।”

“क्या हो गया?”

“नासपीटे! मेरी परवरिश में कहाँ चूक रह गई? धार्मिक विद्वेष को प्रश्रय देते नफरती संदेश मेरा बेटा फैला रहा है! सोच कर शर्म आती है। क्या चाहता है? देश बार-बार दंगों का शिकार होता रहे?”

“माँ! छोटी-मोटी नौकरी करता हूँ। सुरसा सी महंगाई में खर्चे पूरे नहीं होते और तुम मेरा घर बसाने की सपने भी देखती हो? संदेश लिखने वालों को ठीक-ठाक पैसे मिलते हैं, फॉरवर्ड करने वालों को अधिक नहीं। तुम बेकार परेशान हो रही हो माँ। इन संदेशों को पढ़ता ही कौन है?”

“कूढ़मगज! पढ़े गए हुए अल्फाज का असर दिमाग पर होने ही लगता है, तभी तो फॉरवर्ड करने की जुगत भिड़ाई जाती है। वर्षों से हम इस मोहल्ले में रहते आये हैं। हर जाति और धर्म के मित्र हैं हमारे परिवार के। धर्मों की विभिन्नता हमारे देश की बगिया के विभिन्न रंगों के फूल हैं। क्या चाहता है? वातावरण में नफरत का जहर घुल जाए और सब एक दूसरे का अनिष्ट की सोचने लगें? नफरत की तलवारें उठती हैं तो फिर वह अपना पराया नहीं देखती, सिर्फ विनाश पसरता है। उसके बाद बचते हैं – रोते-बिलखते अपनों को खो चुके आधे-अधूरे परिवार।”

“मुझे माफ कर दे, माँ!”

“इसे मेरी पहली और अंतिम वॉर्निंग समझ।”

— नीना सिन्हा

नीना सिन्हा

जन्मतिथि : 29 अप्रैल जन्मस्थान : पटना, बिहार शिक्षा- पटना साइंस कॉलेज, पटना विश्वविद्यालय से जंतु विज्ञान में स्नातकोत्तर। साहित्य संबंधित-पिछले दो वर्षों से देश के समाचार पत्रों एवं प्रतिष्ठित पत्रिकाओं में लघुकथायें अनवरत प्रकाशित, जैसे वीणा, कथाबिंब, सोच-विचार पत्रिका, विश्व गाथा पत्रिका- गुजरात, पुरवाई-यूके , प्रणाम पर्यटन, साहित्यांजलि प्रभा- प्रयागराज, डिप्रेस्ड एक्सप्रेस-मथुरा, सुरभि सलोनी- मुंबई, अरण्य वाणी-पलामू,झारखंड, ,आलोक पर्व, सच की दस्तक, प्रखर गूँज साहित्य नामा, संगिनी- गुजरात, समयानुकूल-उत्तर प्रदेश, शबरी - तमिलनाडु, भाग्य दर्पण- लखीमपुर खीरी, मुस्कान पत्रिका- मुंबई, पंखुरी- उत्तराखंड, नव साहित्य त्रिवेणी- कोलकाता, हिंदी अब्राड, हम हिंदुस्तानी-यूएसए, मधुरिमा, रूपायन, साहित्यिक पुनर्नवा भोपाल, पंजाब केसरी, राजस्थान पत्रिका, डेली हिंदी मिलाप-हैदराबाद, हरिभूमि-रोहतक, दैनिक भास्कर-सतना, दैनिक जनवाणी- मेरठ, साहित्य सांदीपनि- उज्जैन ,इत्यादि। वर्तमान पता: श्री अशोक कुमार, ई-3/101, अक्षरा स्विस कोर्ट 105-106, नबलिया पारा रोड बारिशा, कोलकाता - 700008 पश्चिम बंगाल ई-मेल : [email protected] व्हाट्सएप नंबर : 6290273367

One thought on “गुमराह

  • डॉ. विजय कुमार सिंघल

    इस लघुकथा की लेखिका गुमराह लगती हैं। उन्होंने साम्प्रदायिक दंगों का दोष मैसेज फॉरवार्ड करने वालों पर थोप दिया है। पर उस तथाकथित धार्मिक पुस्तक का कोई उल्लेख नहीं किया, जिसमें काफिरों यानी दूसरे मजहब वालों को सता-सताकर मारने का आदेश दिया गया है। दंगों की जड़ तो वही पुस्तक है।

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