कविता

खीझते हैँ पति

खीझते हैं पति,
जब- जब औरत,
घर को सजाती,
बिन कहे ही,
सबकी जरूरतों का,
सामान जुटाती,
अपने ख़र्चे में से,
कभी कपड़े, उपहार,
जूते, फोन, चिप्स
और न जाने क्या-क्या ?
मन से हर जतन करती,
हर रिश्ते को निभाती,
मिटती हर पल जन्मदात्री,
ज़रा सा कुछ हो,
तो टीसते हैं पति !
खीझते हैं पति ।
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कामकाजी हो या गृहणी सुगढ़,
पर न मिटती इनके
शौहर की अकड़ !
सजा हुआ खाना,
तन पर चमकते हुए कपड़े,
संभले हुए होशियार बच्चे,
नाम कमाएं तो लाल इनके,
बिगड़ जाएं तो जन के 
दूध गिरे, तेल फैले,
फोन पर माँ से लंबी बात करें,
अन्दर-बाहर डोलते बस
खिसियाते हैं पति 
सच खीझते हैं पति ।
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हर वक़्त मुस्कराए,
हर ख्वाहिश और दर्द छिपाए,
जिंदगी के तूफ़ानों को,
जब समुंदर सा सह जाए,
सवेरे से शाम तक,
रात जैसे भी थके नहीं,,
डाले बाहों का हार,
जब शैय्या पर,
तब रीझते हैं पति
सच खीझते हैं पति ।

— भावना अरोड़ा ‘मिलन’

भावना अरोड़ा ‘मिलन’

अध्यापिका,लेखिका एवं विचारक निवास- कालकाजी, नई दिल्ली प्रकाशन - * १७ साँझा संग्रह (विविध समाज सुधारक विषय ) * १ एकल पुस्तक काव्य संग्रह ( रोशनी ) २ लघुकथा संग्रह (प्रकाशनाधीन ) भारत के दिल्ली, एम॰पी,॰ उ॰प्र०,पश्चिम बंगाल, आदि कई राज्यों से समाचार पत्रों एवं मेगजिन में समसामयिक लेखों का प्रकाशन जारी ।