वैज्ञानिक नजरिया क्यों जरुरी
आज का युग विज्ञान का युग है। ऐसी स्थिति में हर व्यक्ति की सोचने और समझने की नजरिया वैज्ञानिक हो यह वक्त की मांग है। राजसत्ता का भी यह कर्तव्य बनता है की विद्यालय की शिक्षा को पूर्ण रूप से विज्ञान पर आधारित बनाए ताकि भविष्य में हर शिक्षित व्यक्ति वैज्ञानिक नजरिया रख सके एवं हर तरह के भेदभाव और अंधविश्वास से मुक्त हो सके।
वैज्ञानिक नजरिया क्या है और क्यों जरुरी है यह समझने से पहले हमें विज्ञान क्या है यह जानना नितांत आवश्यक है। विज्ञान हमेसा ही तथ्यों के आधार पर परीक्षण-निरीक्षण करता है तत्पश्चात जो निष्कर्ष प्राप्त होता है उसका क्रमबद्ध अध्ययन करता है। अर्थात विज्ञान में झूठ और मनगढ़ंत का कोई गुंजाइश नहीं होता है। यदि किसी कारण बस कोई भूल हो गई और किसी ने इसे गलत सिद्ध कर दिया तो विज्ञान में पूर्वाग्रह नहीं होता उस भूल को स्वीकार करते हुए सत्य को स्वीकारना होता है। इसलिए विज्ञान को समझते हुए इसके अनुरूप आचरण करना, तर्क करना, हर तरह के अंधविश्वासों से खुद को मुक्त रखना एवं इसी आधार पर भविष्य की नीतियों का निर्धारण करना मैं समझता हूंँ यही वैज्ञानिक नजरिया या दृष्टिकोण है।
आज आस्था के नाम पर कुतर्क को बढ़ावा दिया जा रहा है यह कहीं से उचित नहीं है। जो बातें तर्कसम्मत नहीं है जिससे अंधविश्वास को बढ़ावा मिलता है उसका विरोध खुलेआम होना चाहिए ताकि अंधविश्वास मिट सके एवं लोगों के सोचने और समझने का नजरिया वैज्ञानिक बन सके। यदि आस्था के नाम पर अंधविश्वासियों को भ्रम फैलाने की पूरी छूट रहेगी तो निश्चित ही सच पर झूठ हावी होता रहेगा। अंधविश्वासी लोग अपने किए के लिए खुद को कभी उत्तरदाई नहीं मानते हैं, उनके नजर में तो सबकुछ कोई रिमोट लिए कर रहा है और वो खुद तो केवल एक माध्यम हैं। इसतरह की मान्यता न केवल व्यक्ति को तर्कहीन बनाता है साथ ही साथ मानसिक रूप से दास भी बनाता है। आज इस वैज्ञानिक युग में भी अधिकांस विद्यालयों में नित्य प्रार्थना कराए जाते हैं अर्थात विद्यालय खुलते ही बच्चे को अंधविश्वासी बनाने की प्रक्रिया चालु हो जाती है। अब ऐसी स्थिति में स्वाभाविक है कि बच्चे किसी भी घटना के कारण को आध्यात्मिक रूप से देखेंगे और समझना चाहेंगे और तब जो सच है वह उन्हें झूठ प्रतीत होगा। उदाहरण के लिए मानव के उत्पत्ति और विकास को ही लिया जाय तो वैज्ञानिक कारण कुछ और है और आध्यात्मिक कारण कुछ और, वो भी भिन्न-भिन्न धर्मो के भिन्न-भिन्न। सवाल यह है की बच्चे ऐसी स्थिति में क्या तार्किक बन पायेंगे? यदि बच्चों को हमें तार्किक बनाना है और उनमें वैज्ञानिक नजरिया उत्पन्न करना है तो निश्चित ही विद्यालय को अंधविश्वास मुक्त करना होगा एवं सभी शिक्षकों को सबसे पहले वैज्ञानिक नजरिया अपनाना होगा, मनगढ़ंत को मनगढ़ंत एवं सत्य को सत्य कहना होगा। मैं समझता हूंँ कि एक अन्धविश्वासी व्यक्ति कभी भी दूसरे को अंधविश्वास-मुक्त नहीं बना सकता है। इसलिए आज वक्त की मांग है कि शिक्षक सबसे पहले खुद वैज्ञानिक नजरिया अपनायें।
आज अंधविश्वासी आदमी खुलेआम अपनी थोथी दलीलों को देता है लेकिन जब उसका उत्तर कोई वैज्ञानिक दृष्टिकोण रखने वाला देता है तो उसे आस्था पर चोट करनेवाला कहकर बोलने से रोक दिया जाता है। यदि यही स्थिति बना रहा तो फिर वैज्ञानिक विचारधारा का विकास कैसे होगा? फिर तो हरतरफ अंधविश्वास और झूठी मान्यताएं ही रह जायेंगी। आज हम वैज्ञानिक युग में हैं और हमारे पास पुरातनपंथ को चुनौती देते हुए सत्य को स्थापित करने की क्षमता है। ऐसी स्थिति में आज वक्त की मांग यह भी है की झूठ को झूठ और सच को सच कहा जाए, न कि आस्था के नाम पर झूठ को फैलने का अवसर दिया जाय। सच तो हमेशा किसी एक संदर्भ में एक ही होता है और वह प्रमाणित होता है। बाकी जो बचा वह हमारी मान्यता है जो सच और झूठ कुछ भी हो सकता है क्योंकि वह प्रमाणित नहीं है। किसी भी मान्यता का तभी तक स्थान होता है जबतक की उस संदर्भ में कोई वैज्ञानिक समझ उत्पन्न नहीं होता है। जैसे ही वैज्ञानिक समझ किसी सन्दर्भ में आ जाता है वैसे ही मान्यता और मिथक को उस संदर्भ से मिटा दिया जाना चाहिए।
आज विज्ञान विकास की जिस मुकाम तक पहुंँचा है निश्चित ही यह संतोष जनक है किंतु इस विकास की दौड़ को बनाए रखना होगा और इसके लिए आवश्यक है की लोगों का सोचने का तरीका वैज्ञानिक हो। अंधविश्वास, कुतर्क, और मिथकों से लोगों को अपना नाता तोड़ना होगा। हम अपनी संस्कृति कहकर मिथकों और अंधविश्वासों को जिंदा नहीं रख सकते। दुनिया में हर चीज परिवर्तनशील है इसलिए संस्कृति में भी हमारी जो खामियांँ दिखती है, हमे उसे दूर करने की जरूरत है। आज हमें पुरातनपंथी विचारों और मान्यताओं पर आधारित रूढ़िगत विचारों को त्यागने की जरूरत है। आज हमें यह भी समझना होगा की वैज्ञानिक विचार सार्वभौमिक और सर्वमान्य होता है इसलिए यह जितना फैलेगा उतना ही इससे संपूर्ण मानव जाति का कल्याण होगा।
— अमरेन्द्र