मिटा दो, ये दूरीया,ये फासले।
आओ न,साहिलो से दूर चले।
न बन्दिशे रहे न दायरे हो।
न चाहतों पे कोई पहरे हो।
फूल हँसे और चराग जले।
आओ न, साहिलो से दूर चले।
हरसू लहरो का ही साज हो।
चाहत की नई परवाज हो।
हम तूफानो से मिल के गले।
आओ न,साहिलो से दूर चले।
गीत लिखे,कोई ख्वाब बुने।
दिल कहे और दिल ही सुने।
यूं जिंदगी जिंदगी से मिले।
आओ न,साहिलो से दूर चले।
— ओमप्रकाश बिन्जवे “राजसागर”