लघुकथा – कर्मठ
बचपन में ही राहुल को मां छोडकर इस दुनिया से चली गयी तो पिता ने घर के साथ खेती-बाड़ी का काम संभाल कर मा की कमी को पूरा करते हुए उसकी परवरिश की । राहुल भी जब कुछ बडा हुआ तो वह भी पिता के हर कार्यों में हाथ बंटाता साथ मे पढने के लिए विद्यालय जाने से भी वह कभी ना चुकता।
जब सब लोग सोते थे तब वह रात के सन्नाटे में अपनी पढ़ाई करता । मां सरस्वती की देन थी कि वह हर परीक्षा मे अच्छे नंबरों से उत्तिरण कर जाता ।
समय बीता । राहुल दसवीं कक्षा तक पहुंच गया । इस बीच उसके पिता का अधिक मेहनत के कारण स्वास्थ बिगड़ने लगी, जिससे राहुल को खेती -बाड़ी की सारी जिम्मेदारी भी उठानी पड़ी ,इससे उसके पिता को कुछ आराम मिलने से उनके स्वास्थ मे भी सुधार होने लगा, दसवीं की परीक्षा का जब परिणाम निकला तो राहुल प्रथम श्रेणी से उत्तीर्ण हुआ ,इससे पिता का सर गर्व से ऊपर हो गया, वही रिश्तेदार जो कभी मुंह ना उठाते वह सलाम करने लगे। उधर अच्छे नम्बर के कारण राहुल को सरकार द्वारा स्कॉलरशिप की सुविधा भी मिल गई। राहुल की प्रतिभा देख पिता अक्सर उसे प्रोत्साहित करते ।
वह आगे की पढ़ाई बड़े अच्छे ढंग से कर जिले में पूरे विद्यालय का नाम रोशन किया ।जिससे स्कूल प्रांगण की ओर से एक सभा का आयोजन किया गया। राहुल भी अपने पिता के साथ वहां पहुंचा।
विद्यालय में अध्यापक गणों द्वारा किया जाने वाला वाह -वाही पिता का सीना चौड़ा कर रहा था। राहुल को सम्मान पत्र दिया देने के लिए मंच पर बुलाया गया। वह सम्मान पत्र स्वीकार कर लिया।फिर अपने प्रधानाचार्य से अनुरोध किया-…सर, क्या मैं अपने पिता को दो मिनट के लिए यहां बुला सकता हूं?
…….. जरूर बेटा।
प्रधानाचार्य की अनुमति मिलते ही राहुल अपने पिता को मंच पर ले कर आया।फिर अपना सम्मान उनकी ओर बढ़ाते हुए कहा–. पापा यह लीजिए आप का तोहफा! इसके असली हकदार आप हैं।
…. बेटा!भावुक हो राहुल के पिता के मुख से इतना ही निकला था कि राहुल बोल पडा. कुछ मत कहिए पापा ,अपने जो मेरे लिए किया वह हर पिता का कर्तव्य तो होता है लेकिन आप मेरे लिए अपने आप तक को भूल गए ,ना जेठ की दुपहरी को समझा, ना पूष की ठिठुरन को, जिससे मैं इतना कर्मठ बना। अब मेरी बारी है ,
बेटे की बात सुन पिता इतना भावुक हो गये की वह कहा पर है,और बेटे राहुल को गोद में उठा लिए यह देख ,मंच तालियों की गड़गड़ाहट से गूंज उठा…..…दोनों वहां से हंसी खुशी चल दिए…..
— डोली शाह