गीतिका
काश इसको याद रख पाते, सखे !
दिन कभी सबके बुरे आते, सखे !
जिन्हें आदत साजिशों की लग गई,
पीठ पर वह घाव कर जाते ,सखे !
बाग में आयेगा पतझड़ लौटकर ,
हमेशा भौंरे नही गाते , सखे !
जिस्म मिलते ,इश्क को बदनाम कर,
अब कहाँ हैं लोग शरमाते सखे !
कुर्सियों पर जहाँ मतवाला कोई,
हम वहाँ पे बहुत घबराते सखे !
© डॉ. दिवाकर दत्त त्रिपाठी