गीत
काट करके पंख तूने पक्षियों से गगन छीना,
व्याध तुझको शाप है, तेरा पतन हो !
पीर पर हँसता रहा तू,
हाय कुत्सित बुद्धि वाले।
सिर्फ चेहरा ही नही ,
हैं कर्म तेरे और काले ।
तू स्वयं मे पाप है, तेरा पतन हो ।
व्याध तुझको शाप है………….
पक्षियों के मधुर कलरव ,
हो गये हैं मौन सारे ।
भय भरे हैं नीड़ सब,
तूने जहर के तीर मारे ।
विपिन मे संताप है,तेरा पतन हो ।
व्याध तुझको शाप है…………
बोझ हत्याओं का लादे ,
तू अधम चलता रहा है।
स्वार्थ में खगवृंद को
यमदूत बन डसता रहा है।
अति अधम तू साँप है, तेरा पतन हो ।
व्याध तुझको………………
शाप तेरी मति हमेशा,
अधम कर्मों मे लगाये ।
मन सशंकित ही रहे,
तू शांति को ढूँढे न पाये।
मौन ही अभिशाप है, तेरा पतन हो।
व्याध तुझको शाप है……………..
©डॉ. दिवाकर दत्त त्रिपाठी