कविता

संक्रांति

गीन पतंगो की क्रांति आई
आई रे आई संक्रांति आई
उॅंजली- उॅंजली सी धूॅंप निकल आई
सुतो की टोली छत पर उमड़ आई
तिल के लड्डू, बाट्टी का चूरमा
मूंग की दाल, बूॅंदी का रायता
घर के दीये में बाती जल आई
आई रे आई संक्रांति आई
मांझा है पक्का डोरी है सच्ची
अपनी पतंगे दूर तलक है उड़ी
थोड़ी सी ढील तो दो रे साथिया
नभ में उड़ी पतंगे लाल, पीलिया
कट ना जाए मांझे से कलाई
आई रे आई संक्रांति आई
— निहाल सिंह

निहाल सिंह

गाँव- दूधवा जिल्ला- झुन्झुनू ,राजस्थान व्यवसाय- कृषि सम्प्रति- कई पत्र- पत्रिका में रचनाएँ प्रकाशित email : [email protected]