कविता

मन के तूफान

मन के तूफान
करते है  बातों को शुन्य
खामोशियों को पैदा कर
एकांतता प्रदान करते है।
होते है हम
सोचने को मजबूर
दूर कहीं विचरण
करता ये मन
जो चाहते हम रोकना
मन को
सोचना चाहत क्या
सही क्या गलत
पर हर कोई स्वयं के
स्वभाव से मजबूर।
संयमता को भूल
तूफान को उफान दिलाते
जो थोड़ा रुक जाते
तो बच जाते और
चंचलता में डूब ही जाते।
इसलिये रुको,संभलों,
ठहरो यही हैं जिंदगी।

— प्रियंका पेडिवाल अग्रवाल

प्रियंका पेड़ीवाल अग्रवाल

विराटनगर-नेपाल