कविता

मेरी कविता

मेरी कविता
कोमल- कठोर हो जाती
समय के अनुसार नहीं चलती है ।
मेरी कविता
किसी का मन हरषाती
तो किसी के सीने में चुभ जाती है ।
मेरी कविता
गांव की पगडंडी पर मिल जाती
कुछ पागल, कुछ भोली बनकर बतियाती है ।
मेरी कविता
मंद -मंद मुस्काती
प्रेम सुधा रस बरसाती है ।
मेरी कविता
जन-जन की पीड़ा हरती
शोषण, अत्याचार, भेदभाव से लड़ जाती है ।
मेरी कविता
फूल -कांटे बन जाती
जहां जिसकी जरूरत वैसी ही हो जाती है ।
— मुकेश कुमार ऋषि वर्मा

मुकेश कुमार ऋषि वर्मा

नाम - मुकेश कुमार ऋषि वर्मा एम.ए., आई.डी.जी. बाॅम्बे सहित अन्य 5 प्रमाणपत्रीय कोर्स पत्रकारिता- आर्यावर्त केसरी, एकलव्य मानव संदेश सदस्य- मीडिया फोरम आॅफ इंडिया सहित 4 अन्य सामाजिक संगठनों में सदस्य अभिनय- कई क्षेत्रीय फिल्मों व अलबमों में प्रकाशन- दो लघु काव्य पुस्तिकायें व देशभर में हजारों रचनायें प्रकाशित मुख्य आजीविका- कृषि, मजदूरी, कम्यूनिकेशन शाॅप पता- गाँव रिहावली, फतेहाबाद, आगरा-283111