गीतिका/ग़ज़ल

ग़ज़ल

जो ग़लत हो वो हमें कैसे, गवारा होगा।
वो भले आसमाँ का चाँद, सितारा होगा।।
तो कहो क्यूँ करें, उम्मीदों वफ़ा हम उससे।
जो न ख़ुद का हुआ, क्या ख़ाक हमारा होगा।।
ये ज़माने का है दस्तूर, सुना करते हैं।
कि यहांँ कोई किसी का न, सहारा होगा।।
आज फिर हो रही है ज़ोर की बारिश, शायद।
उसने शिद्दत से हमें, रो के पुकारा होगा।
हाथ उसका तो हथेली की वो, गर्मी तौबा।
मेरे मौला क्या वो जलवा, न दुबारा होगा।।
मैं वो कश्ती हूँ, जो लहरों से लड़ी है अक्सर।
इसको साहिल पे ठहरना, न गवारा होगा।।
तू ‘किरण’ पास है ख़ुद के, बता फिर क्या ग़म है।
क्या किसी ने कभी यूंँ तुझको, निहारा होगा।।
— प्रमिला ‘किरण’

प्रमिला 'किरण'

इटारसी, मध्य प्रदेश