बाल कविता

चांद

सूरज डूब गया हैं चंदा,
जल्दी बाहर आओ न,
कितने सुंदर दिखते हो,
मुझको यूं तरसाओ न।
रोज़ नहाऊं रगड़ रगड़ कर,
तुमसा मैं हो पाऊं न,
कैसे घटते बढ़ते रहते,
मुझको ये बतलाओ न।
संग साथ सितारे लाते,
लेकिन दिन में तुम छिप जाते।
सूरज से लेते हो रौशनी,
अंधकार सारा मिटाओ न।
देखो कितनी काली रात हैं,
अब चांदनी फैलाओ न।
कल थे आधे , आज हो पूरे,
इसका राज़ बताओ न।
चुप चुप क्यों बैठे हो आज,
मीठी लोरी गाओ न,
तुम तो लगते सबको प्यारे,
मुझको दोस्त बनाओ न।
— आसिया फारूकी

*आसिया फ़ारूक़ी

राज्य पुरस्कार प्राप्त शिक्षिका, प्रधानाध्यापिका, पी एस अस्ती, फतेहपुर उ.प्र