आजादी का अमृत महोत्सव
हिन्दुस्तान की यह शान है, अनेकता में एकता ही पहिचान है।
भेद नहीं यहां कोई भी मन का, भरा भाव है यह सब जन का।।
पुराकाल से राष्ट्रीय जन का, धर्म-आद्यात्म का भाव भरा था।
ऋषि-मुनियों के ज्ञान-ध्यान का, मार्गदर्शन का प्रभाव रहा था।।
देवभक्ति के साथ यहां पर, देशभक्ति का मेल रहा था।
राष्ट्र-रक्षा और विकास का, सबके मन में भाव भरा था।।
देश के दुश्मन बाहर खड़े थे, उनसे राष्ट्र के शहीद लड़े थे।
समान भाव व विचार लिए थे, देश रक्षा को सभी खड़े थे।।
जब भी किसी ने की चालाकी, चुकानी पड़ी उन्हें कीमत भारी।
सत्य-सनातन भाव था भारी, समाज सुधार का काम था जारी।।
राष्ट्रीयता की है ये कहानी, इतिहास की है यही जुबानी।
देश-धर्म पर मिटने वाले, महान् शहीदों की है कुर्बानी।।
अट्ठार सौ सत्तावन की चिंगारी, मंगल पांडे ने यह ठानी।
स्वतंत्रता की यही क्रांति, राष्ट्रीय एकता की बनी निशानी।।
लक्ष्मी बाई की महा कुर्बानी, राष्ट्र स्वाभिमान की कथा-कहानी।
क्रांतिवीरों की निश्चय जुबानी, हर हाल में हट जाय गुलामी।।
अगस्त क्रांति की महा निशानी, राष्ट्र छोड़ना तब दुश्मन जानी।
पन्द्रह अगस्त की सुबह सुहानी, आजाद भारत की मनहर कहानी।।
पिचहत्तर वर्ष का स्वर्णिम सफर, बढ़ाता राष्ट्रप्रेम अर मन का बल।
आजादी का अमृत महोत्सव, स्वतंत्र राष्ट्र का यह गौरवशाली पल।।
शहादती पथ पर चलने की,राष्ट्रीय जनों ने अब मन में ठानी।
अमर शहीदों की वह कुर्बानी; सदा याद रखेगा हर हिन्दुस्तानी।।
— शम्भु प्रसाद भट्ट ‘स्नेहिल’