वीरों की सौगंध
लेते हैं सौगंध आज हम, माता तेरे वीरों की,
देकर प्राण हुए बलिदानी, वो खानें थी हीरों की।
उनके पदचिन्हों पर चलकर, साहस उनसे पाते हैं,
लेकर प्राण हथेली में नित, शीश शत्रु का लाते हैं,
हम राणा सांगा के वंशज, चिंता नहिं जागीरों की।
सर्द हिमालय की चोटी पर, ध्वज हमने फहराया है,
चीर सिंधु की प्रबल उर्मियाँ, विजयी का सुख पाया है,
सिंह दाँत गिनने वाले हम, चिंता नहिं तकदीरों की।
आज तिरंगे के रंगों को, अंतरिक्ष पहुँचाया है,
जन गण मन के अमर गान से, नभ में शोर मचाया है।
रिश्ते रेशम से हम बुनते, चिंता नहिं जंजीरों की।
रामराज्य का स्वप्न हमारा, शौर्य हमारी पूजा है,
आभूषित हम दया धर्म से, अस्त्र कोई न दूजा है,
किंतु भ्रमित नहिं होते पथ से, चिंता नहीं अंगारों की।
नभ के तारों को चुन चुन कर, तुझको मातु सजाएंगे,
तेरी महिमा के गीतों से, नेहिल घट भर जायेंगे,
जननी तू हम तुझे पूजते, चिंता है संस्कारों की।
लेते हैं सौगंध आज हम, माता तेरे वीरों की,
देकर प्राण हुए बलिदानी, वो खानें थी हीरों की।
— सीमा मिश्रा