बोलियों को विलुप्त होने से बचाने हेतु प्रयत्न करें
मालवा निमाड़ क्षेत्र के लोगों के लिए मालवी निमाड़ी बोलियों की साहित्य अकादमी खोलने की मांग प्रशंसनीय है। मध्यप्रदेश में मालवी निमाड़ी अकादमी स्थापित किए जाने की आवश्यकता है। इन बोलियों का साहित्य उपलब्ध नहीं हो पाता साथ ही छात्र छात्र छात्राओं को शोध में सहायता मिल नहीं मिल पाती है। एक जानकारी के मुताबिक गूगल सर्च इंजन ने अपने पहले ‘डायरेक्ट स्पीच टू स्पीच ट्रांसलेसनसिस्टम में बिना किसी दुभाषिए के दो अलग भाषा बोलने वाले लोगों के बीच बिना किसी असुविधा के संवाद मुमकिन बना दिया है। वैश्विक व्यापार से लेकर विभिन्न संस्कृतियों के बीच भाषाई दूरी को ख़त्म करने का काम करेगा। ठीक उसी तरह क्षेत्रीय बोलियां भी हैं जिसमें कई तो विलुप्ति की कगार पर जा पहुँची। और कई बोलियाँ अन्य बोलियों में एवं अंग्रेजी में मिश्रित हो गई है। जिससे उनको बोली जाने वाली लय एवं शब्द अपने मूल स्वभाव से दूर होती दिखाई देने लगी है। इनके हीत के लिए गूगल सर्च इंजन ‘डायरेक्ट स्पीच टू स्पीच ट्रांसलेसनसिस्टम में क्षेत्रीय बोली को भी जोड़ा जाना चाहिए। ताकि भाषा के अलावा क्षेत्रीय बोलियों की भी एक दूसरे को समझ हो सकें। मालवी निमाड़ी बोलियों को प्राथमिकता देने हेतु मध्य प्रदेश में मालवी निमाड़ी अकादमी स्थापित होनी चाहिए। बोली मे विकृति पैदा होने से रोकेकुछ बोलियाँ ऐसी है, जिनके बोलने वाले कुछ लोग अक्सर बोली मे अपशब्दों का प्रयोग तकिया कलाम के रूप मे करते है। चाहे वे जानवरों के लिये या इंसान के लिये बोली गई हो। ये बोली में समाए अपशब्द गुस्से के समय या बराबरी के लोगों या आपसी बेरभाव निकालते समय जाहिर करते हैं। वे इस पर जरा भी गौर नहीं करते कि बच्चों के प्रति इसका असर कितना होगा। बोली में स्वयं विकृति पैदा करके शुद्दता नहीं लायेगे तो बोली मे विकृति पैदा होकर वह विलुप्प्ता की और अपने आप चली जायेगी। ऐसे मे बोली का सम्मान करने वालों का प्रतिशत बहुत कम रह जायेगा। एक और कुछ ही लोग है, जो बोली के सम्मान के लिये आगे आये है ।वे इस दिशा मे गीत, कहानी, लघु कथा, हायकू, दोहा, कविता आदि के माध्यम से कार्यक्रम आयोजित कर एवं उनके द्वारा लिखित कृतियों का विमोचन कर प्रचार – प्रसार मे लगे हुए है। ऐसे लोगों की संख्या बहुत कम है ।बोलियाँ को बचाने की पहल की जाना चाहिए। बोलियों तो व्यवहार में लाने से ही जिन्दा रहेगी।कई क्षेत्रों में बोली बोले जाने का प्रतिशत कम होता दिखाई देने लगा है। कई बार क्षेत्रीय बोली खड़ी भाषा के संग मिश्रित हो जाती है। क्षेत्रीय बोली जहाँ उचित हो वहां पर अवश्य बोली जाए। वर्तमान में शहरों एवं गांवों में जान पहचान वाले लोगों से लोग अपनी बोली में बात करने के बजाए खड़ी बोली में बात करना ज्यादा पसंद करने लगे है। जो की बोली के हित में उचित नहीं है|ऐसे में धीरे धीरे ये क्षेत्रीय बोलियां हमसे ही दूर हो जाएगी। बोलियों के संरक्षण के स्थानीय प्रयासों को बढ़ावा दिया जाना चाहिए ताकि बोलियों को संरक्षित कर उसे बचाया जा सकें। सोशल मिडिया, वॉट्सऐप ग्रुप एवं पत्र पत्रिकाओं में साहित्य विधा के रूप में एवं गीत,नाट्य,काव्य मंच के प्रयासों से इसको बढ़ावा दिया जा सकता है।
— संजय वर्मा ‘दृष्टि’