इतनी जल्दी
कुछ देर और, क्यूं जाना था, घर इतनी जल्दी।
क्यूं किया खत्म जिंदगी का सफर इतनी जल्दी।
दुनिया सरायेखाना, सब को जाना एक दिन,
कौन ठहरता है यहां, मगर इतनी जल्दी।
कितने फूल खिलने बाकी थे, अभी बगिया में,
किसे था पता के आयेगा पतझर इतनी जल्दी।
आपकी मुस्कान में मचलते थे आबशार कई,
सूख गया क्यूं प्यार का सागर इतनी जल्दी।
इधर कितनों के ख्वाब टूटे, तुम्हारे बिन,
क्या हुआ के चल पड़े उधर इतनी जल्दी।
— ओमप्रकाश बिन्जवे “राजसागर”