स्मृतियां
हे प्रतिबंधित स्मृतियां!
जब तुम आते हो,
मैं उलझ जाती हूं ।
तुम्हारा सत्कार करूं,
या दुत्कार दूं।
सोचती हूं,
तुम मेरे हो तो,
आओगे मेरे पास ही।
जुबां पर नहीं पर,
मस्तिष्क में आने से ,
तुम्हें कौन रोक सकता हैं ।
स्वयं मैं भी नहीं रोक सकती ।
तुम्हें कोई नहीं मिटा सकता ।
क्योंकि तुम प्रतिबंधित हो ।
स्मृति हो मेरा बीता हुआ कल हो।
आते रहो,
पर उलझाने के लिए नहीं,
जीवन मार्ग प्रशस्त करने के लिए।
मेरे ,
मस्तिष्क और हृदय में,
तुहारा स्वागत हैं।
पर,,
कभी जुबां पर मत आ जाना
लोग नाराज़ हो जाएंगे ।
— सुलेखा झा