गीतिका/ग़ज़ल

ग़ज़ल

ज़िन्दगी    है    बहुत   मुख़्तसर   भाइयों

सर   झुकाओ  चलो  रब  के  दर  भाइयों 

ये   है  दुनिया  क़यामत  में  मिट  जाएगी

तुम   बनाओ  तो  जन्नत  में  घर  भाइयों 

तुम  मुहब्बत  को  दिल  में  बसाये  रखो

नफ़रतों   का   बहुत   है   असर  भाइयों 

तुम   गुज़ारों   हँसी   से, ख़ुशी   से  यहाँ

सबको  जाना  है  अंतिम  सफ़र  भाइयों 

आज   राहे – सदाक़त  है  मुश्किल  मगर

झूट     का    रास्ता    पुरख़तर    भाइयों 

मत   भटकना   कभी  अपने   ईमान  से

राहे  –  ईमान     चलना    मगर   भाइयों 

पेट   ख़ातिर   रहो  तुम  कहीं  भी  मगर

अपनी  मिट्टी  की  रखना  ख़बर  भाइयों 

अब   न  ‘ऐनुल’  शजर  डरते  तूफ़ान  से 

तान    सीना    खड़े   हैं   शजर   भाइयों

— डाॅ. ऐनुल बरौलवी

डाॅ. ऐनुल बरौलवी

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