जीने की वजह हो तुम
यूं ही नही चाहा तुम को,के तुम खूबसूरत हो।
जीने की वजह हो तुम, तुम मेरी जरूरत हो।
मेरी चाहत की पहली आरजू की तरह।
साँसों में बस गए हो,खुशबू की तरह।
यूँ ही नही सराहा तुम को,के तुम खूबसूरत हो।
जीने की वजह हो तुम।
भोर की पहली किरण या पूजा का दिया हो।
तुम मेरी जिन्दगानी,तुम्ही दिलरुबा हो।
यूँ ही नही पूजा तुम को,के तुम खूबसूरत हो।
जीने की वजह हो तुम।
बहके है कदम,के साँसों में खुमार सा है।
नींद उड गई आँखों से, के इंतजार सा है।
यूँ ही नही देखा तुम को,के तुम खूबसूरत हो।
जीने की वजह हो।
— ओमप्रकाश बिन्जवे “राजसागर”