गजल
तुम्हारी याद ने इतना सताया
मैं सारे बंधनों को तोड़ आया
मिलन की अब कोई भी शर्त ना हो
कि शर्तों ने मुझे बेहद छकाया
मैं कल की फिक्र में ये पल गँवा दूँ
मैं इस दर्शन से ऊबा पार पाया
डरूँ क्यों बोलने में सच भला मैं
मुझे ये हौसला तुमने दिलाया
मुझे लेना न कुछ आवागमन से
सफर में हमसफर का साथ भाया
बहस करना नहीं पर बात करना
मुझे इस मन्त्र ने जीना सिखाया
परिन्दा हूँ उड़ानें भर रहा हूँ
मेरे पंखों में सारा नभ समाया
सुमन हूँ मैं वो जिसकी गन्ध तुम हो
जमाने भर को तुमने ही बताया
छुआ अस्तित्व ने मन को झिंझोडा
मुझे सोते से यूँ तुमने जगाया
चुराकर मैंने तुमसे भाव सुन्दर
बनाकर गीत तुमको ही सुनाया
यही है ‘शान्त’ बस उपलब्धि मेरी
कि तुमने भी मुझी को गुनगुनाया
— देवकी नन्दन ‘शान्त’