मासूम सी मुस्कान
घर पर कार्य चल रहा था । दोपहर को अपने मजदूर के लिए नाश्ता लेने मैं हलवाई की दुकान पर चला गया । नाश्ता पैक कराकर हलवाई से पूछा कितने पैसे हुए ।
‘साठ रुपए’…
‘पचास में काम चल जायेगा ना’…
वह मान गया । मैंने दस रुपए का नोट अपनी कमीज की जेब में रखा और नाश्ता थैले में । बाइक को पहली किक मारी ही थी कि अचानक से मेरी नजर सड़क की दूसरी ओर बैठे एक साॅंवले से कमजोर लड़के पर चली गई । वह शायद किसी ईंट भट्ठे पर कार्य करने वाले मजदूर का बेटा था । हो सकता है, उसका पिता अंदर गली में ईंटों की भरी ट्राली खाली कर रहा हो और वह उसी की प्रतीक्षा में बैठा हो ।
मैंने उसे पास आने का इशारा किया, वह आ गया । उसे दस रुपए का नोट थमा दिया, ‘जा कुछ खा ले ।’
वह मासूम सी मुस्कान के साथ चला गया । उसकी मुस्कान ने हृदय को असीम शांति प्रदान की…।
— मुकेश कुमार ऋषि वर्मा