कविता

मनुष्य और प्रकृति

न हवा शुद्ध है 

न पानी शुद्ध है 

न धूप शुद्ध है 

न छांव शुद्ध है 

मनुष्य के स्वार्थ ने 

धरती पर कुछ भी शुद्ध न छोड़ा 

प्रकृति को तहस-नहस करके 

विकास का राग अलापता है ।

नित बढ़ रहा प्रदूषण का साम्राज्य 

ग्लोबल वार्मिंग की लपटों से जल रही धरा

भूजल के अति दोहन से निचोड़ ली धरा 

अंधाधुंध वृक्षों की कटाई से उजाड़ दी धरा 

रे मनुष्य !

तेरे स्वार्थ की न सीमा कोई…?

तूने बना दिए महाविशाल अति घने कंक्रीट के जंगल 

जिनके बोझ से दबी जा रही है धरती 

समय रहते जाग मनुष्य 

ले विवेक से काम 

प्रकृति दे रही संकेत 

समय अभी भी तेरे हाथ 

चेत जा मनुष्य 

न कर प्रकृति  से खिलवाड़ 

भविष्य को सुरक्षित- सुखमय बनाने 

कर प्रकृति से प्यार ।।

— मुकेश कुमार ऋषि वर्मा

मुकेश कुमार ऋषि वर्मा

नाम - मुकेश कुमार ऋषि वर्मा एम.ए., आई.डी.जी. बाॅम्बे सहित अन्य 5 प्रमाणपत्रीय कोर्स पत्रकारिता- आर्यावर्त केसरी, एकलव्य मानव संदेश सदस्य- मीडिया फोरम आॅफ इंडिया सहित 4 अन्य सामाजिक संगठनों में सदस्य अभिनय- कई क्षेत्रीय फिल्मों व अलबमों में प्रकाशन- दो लघु काव्य पुस्तिकायें व देशभर में हजारों रचनायें प्रकाशित मुख्य आजीविका- कृषि, मजदूरी, कम्यूनिकेशन शाॅप पता- गाँव रिहावली, फतेहाबाद, आगरा-283111