मेरी कविता रहने दो
मुझसे सारा सागर ले लो
प्रेम की धारा बहने दो
सारी दौलत छीन लो लेकिन
मेरी कविता रहने दो !
मैंने कब रोका है तुमको
ख़ूब करो अपने मन की
लेकिन मैं खामोश रहूँ क्यों ?
मुझको मेरी कहने दो !
मैं तुम-सा कमज़ोर नहीं हूँ
मैं कविता का प्रेमी हूँ
बहुत बड़ा दिल रखता हूँ
दुनिया के दु:ख सहने दो ।
दुनिया है पत्थर का टुकड़ा
इसका लालच क्या करना ?
प्यार-भरा दिल हीरे जैसा
सबको ऐसे गहने दो ।
मैं सबका हूँ सब मेरे हैं
मेरा तो सिद्धान्त यही
मैंने तो अपनी कह दी
उनको भी तो कहने दो ।
तुमसे वो ना कही गयी
बाक़ी क्या-क्या कहते हो
अब भी ना कह पाओगे
जाओ, हटो तुम रहने दो ।
झील-नदी और दरिया-सागर
मेरा सब कुछ मुझमें ही
मैं कहता हूँ सुन भी लो
खिलकर मुझको बहने दो ।
मैंने भी तो ख़ूब सहे हैं
तीर उलाहने-तानों के
हल्की मेरी सोच नहीं है
और अभी कुछ सहने दो ।
बोझ तुम्हारे अहसानों का
लिए आज भी फिरता हूँ
थोड़ा ये भी कम हो जाए
कुछ तो ऐसा कहने दो ! !
मेरी कविता रहने दो . . .
— सागर तोमर