पुस्तक समीक्षा – समाज व साहित्य को नवीन दिशा में ले जाती गुलाबी गलियाँ
आजादी की पौन सदी व्यतीत हो चुकी है। हम आजादी का अमृत महोत्सव बड़े गर्व से मना रहे हैं, लेकिन इतना समय व्यतीत हो जाने के बाद भी समाज के समस्त वर्गों का अपेक्षाकृत विकास नहीं हो सका है। आज शहरों व कस्बों की संख्या बढ़ रही है। गाँवों तक आधुनिक सुविधायें पहुँचाने के प्रयास हैं। शिक्षा व स्वास्थ्य सेवायें को निःशुल्क करने का ढिंढोरा पीटा जा रहा है। नित्य सुधार व विकास की घोषणाएँ होती जा रही हैं,लेकिन गाँव में गंदगी,गरीबी,छुआछूत और भेदभाव जैसी कुरीतियाँ आज भी विद्यमान हैं।
आज महानगरों में मलिन बस्तियाँ दिखाई देती हैं। सड़कों पर बड़ों से लेकर बच्चे तक भी भीख माँगते नज़र आ रहे हैं। समाज में स्त्रियों को समान अधिकार देने की बात की जा रही है और इसके लिए उन्हें हर क्षेत्र में समान हिस्सेदारी का आरक्षण प्रदान करने के लिए नियम-कानून भी बनाए जा रहे हैं ।
अगर राजनीतिक क्षेत्र में देखें तो अधिकतर महिला प्रतिनिधियों का कार्य पुरुष ही संचालित करते हैं। इलाहाबाद हाईकोर्ट तक कह रहा है कि महिलाएं रबर स्टम्प सी बनी हैं। शिक्षा और अन्य क्षेत्रों में महिलाएँ आज भी असुरक्षा का अनुभव कर रही हैं। साहित्य और सिनेमा समाज का दर्पण होता है, समय-समय पर जो स्त्री-विमर्श को प्राथमिकता देकर हमारा ध्यान स्त्रियों की स्थितियों व परिस्थितियों की ओर खींचता रहा है। स्त्री विमर्श में किन्नर विमर्श व वेश्या विमर्श भी आज साहित्य का प्रमुख हिस्सा बन चुके हैं।
इसी बीच श्वेतवर्णा प्रकाशन दिल्ली से प्रकाशित, वरिष्ठ लघुकथाकार सुरेश सौरभ के संपादन में वेश्याओं पर केंद्रित लघुकथाओं का साझा संग्रह हमारे हाथों में हैं। ‘गुलाबी गलियाँ’ नामक इस साझा संकलन में देश के प्रतिष्ठित व नवोदित 63 लघुकथाकारों की 73 लघुकथाएँ संग्रहित की गई हैं ।
सच्चा साहित्यकार वही है जो समय समाज की वर्तमान समस्याओं को अपने साहित्य सृजन में स्थान दे। सुरेश सौरभ जी यह कार्य कुशलता, अपनी पूर्णक्षमता व लगन से कर रहे हैं, जो अत्यंत सराहनीय तथा वंदनीय है। इनकी रचनाधर्मिता समाज में व्याप्त समस्याओं,विसंगतियों,कुरीतियों एवं कुप्रथाओं पर केंद्रित रही है।
गुलाबी गलियों के रंगीन उजाले में हमें समाज की बहिष्कृत तथा बेबस स्त्रियों की चीखें आहें व कराहें सुनाई पड़ती है। इसकी अंतहीन और अंधकारमय कोठरियों में विवश नारी की चाह के चीथड़े जो पुरुषों के पाँव तले रौंदे हुए होते हैं जो समाज की सड़क पर वीभत्स रूप से पड़े दृश्यमान होते है।
इस संग्रह की लघुकथाएँ प्रेम के झूठे जाल में फँस कर किसी युवती के देह व्यापार को स्वीकार करके अपना जीवन नरकीय बनाने की विवशता को प्रस्तुत करने में सक्षम हैं।
संग्रह में संकलित लघुकथाएं क्रमशः वापसी, सजना है मुझे,सबसे खूबसूरत औरत,देवी माँ ,दलदल,कैसे-कैसे लोग,बहू तथा नवजीवन सरीखी लघुकथाओं में वेश्याओं के अंतस में एक आदर्श जीवन व समाज की मुख्य धारा में बहने की इच्छा जीवंत होती नज़र आती है।
दंगे की एक रात,थरथराते हुए, तवायफ,सीख और रंग बदलती तस्वीरें, रेडलाइट जैसी लघुकथाओं में देह का व्यापार करते हुए भी वेश्याओं की नजरों में दया, करुणा, प्रेम, त्याग आदि मानवीय गुण देखने को मिलते हैं।
गुलाबी गलियों के स्याह उजाले में सभ्य एवं शिक्षित समाज की असली सूरतें टटोली जा सकती हैं। जिसमें असली चेहरा,चरित्र हनन,असर, पेशा,गंगाजल आदि लघुकथाएँ इसका सार्थक माध्यम हैं।
समाज में हर रिश्ते की डोर पुरुष के हाथ में होती है जिसे वह अपने स्वार्थ और सुविधा अनुसार तोड़ देता है। स्त्री इस टूटन से भयभीत रहती है जिसके फलस्वरुप उसके हृदय में अविश्वास उपज जाता है और ऐसे में यदि वह किसी नये रिश्ते में बँधती भी है तो वह सदैव सहमी और सचेत रहती है। प्यार नहीं करती, ग्राहक आदि लघुकथाएँ इसी भावभूमि पर उतरी हुयी हैं।
परिवार की पितृसत्तात्मक प्रणाली समाज की असहाय व निराश्रित बेबस बहुओं तथा अबोध बच्चियों को वेश्यावृत्ति की गंधाती गलियों में ढकेल देती है। कैसे सभ्य शिक्षित एवं संस्कारी परिवार में जन्म लेने के बाद भी कोई स्त्री वेश्यावृत्ति के दलदल में आ गिरती है। कैरेक्टरलेस,पीर जिया की, वह एक रात, चरित्रहीन, ईमानदारी जैसी लघुकथाओं में यह सब हमें सहज दीख जाता है।
पुस्तक की प्रत्येक लघुकथा हमें समाज के सच का दर्शन कराती है और स्त्रियों के दीर्घ दुख, घोर घुटन व असहनीय पीर को पढ़ कर सोचने पर विवश करती है।
गुलाबी गलियों से गुजरते हुए हमें नारी गरिमा के गुलाब रौंदे हुए मिलेगें जिसमें समाज की क्रूर करनी के काँटे हृदय में चुभ जाते हैं।
इस संग्रह की प्रत्येक लघुकथा हमारे अंतस में उतर जाती है, जो स्त्री की विवशता को व्यवसाय में परिवर्तित होने के घटनाक्रम को हमारे समक्ष रखती हैं और समाज की सड़न भरी सोच को उजागर करती हैं।
सुरेश सौरभ जी ने गुलाबी गलियाँ जैसी संग्रह में वेश्या विमर्श पर आधारित मार्मिक-हार्दिक लघुकथाओं का संग्रह प्रस्तुत करके समाज एवं साहित्य में सराहनीय व वंदनीय पहल की है।
यह पुस्तक सामाजिक एवं साहित्यिक हित में बार-बार पढ़ने योग्य है। संग्रहणीय तथा चिंतन मनन योग्य है। निश्चित रूप से साहित्य जगत को इस संग्रह से वेश्या के विमर्श में सार्थक बल मिलेगा। समाज व साहित्य की सोच को एक सकारात्मक नवीन दिशा मिलेगी।
मैं हृदय तल से पुस्तक के संपादक सुरेश सौरभ जी एवं प्रत्येक सम्मिलित लघु कथाकार को साधुवाद देता हूँ।
समीक्षक–विनोद शर्मा ’सागर’
पुस्तक-गुलाबी गलियां (साझा लघुकथा संग्रह)
संपादक-सुरेश सौरभ
मूल्य-249रु
प्रकाशन-श्वेतवर्णा प्रकाशन नई दिल्ली।
वर्ष-2023