बचपन के दिन
खुशियों के वे पल आ जाते।
बचपन के वे दिन मिल जाते।
रोना-धोना, खेल-खिलौना,
हंसते-गाते बढ़ते जाते।।
बारिश में सब नाव चलाते।
चाट पकौड़ी चटनी खाते।
नानी की परी कथा सुहानी,
सबके संग पिकनिक पे जाते।।
पापा घर पर जब आ जाते।
पास बिठा कर हमें पढ़ाते।
स्कूल से थक कर जब आते,
मम्मी को हम हर बात बताते।
मस्ती करते उधम मचाते।
गुड़िया की शादी करवाते।
कितने अनमोल थे वो पल,
चाह कर अब मिल न पाते।।
खुशियों के वे पल आ जाते।
बचपन के वे दिन मिल जाते।
छोटे-छोटे पंखों से हम सब,
आसमान में उड़ना चाहते।।
— आसिया फारूकी