बनना है तो कोहिनूर तू बन
बनना है तो कोहिनूर तू बन,
गोबर में भला क्या रखा है ?
चर्चा करना है तो इंसानियत पर कर,
जाति-धर्म में क्या रखा है ?
खुद को पहचान तू मानव है,
इंसानियत से क्यों तू भटकता है ?
सबके धमनी में है लाल रक्त,
है मूर्ख अगर तू खुद को श्रेष्ठ समझता है।
जो हम हैं वही तो तू भी है,
बंदर से हम सबका पुराना नाता है।
क्या ब्राह्मण-क्षत्री, क्या वैश्य-शुद्र,
सबका लहू का रंग तो एक ही है।
चलो निर्माण करें हमसब,
विभेदों में हमें न उलझना है।
हम पढ़े-लिखे इंसान हैं तो,
हमें नफरत की बीज न बोना है।
चहुँ ओर प्रेम की फूल खिले,
हमें यही उत्तम विचार अपनाना है।
हम गर्व करें तो उस पर करें,
जो इंसानियत पर चलने वाला है।
ये देशी और विदेशी क्या,
मानवता की राह का रोड़ा है।
कोई गोरा है कोई काला है,
रंग अलग सही, सब मानव है।
अपना पराया क्या करता है,
किस पर रोब जमाता है ?
बार-बार जाति पूछता है,
क्या भरा दिमाग में भूंसा है ?
उन मनीषियों से सबक तुम लो,
जिन्होंने नफरत की आग बुझाई है।
बनना है तो कोहिनूर तू बन,
गोबर में भला क्या रखा है ?
— अमरेन्द्र