बाल कहानी : कैकू और क्रैबी
खरखरा जलाशय के आसपास के गाँवों के किसानों ने अपने सूखे खेतों में पानी ले जाने के लिए सिंचाई विभाग को अर्जी देकर जलाशय के मेन गेट को खुलवाया। पानी बड़ी तेजी से नहर नाली में बहने लगा। नहर नाली के मेड़किनारे में एक छोटा सा गड्ढा था। इस गड्ढे में मकरू केकड़ा सपरिवार रहता था। तेज जलप्रवाह के चलते मकरू का परिवार सम्भल नहीं पाया। एक भारी चट्टान से टकरा गया। पूरा परिवार तहस-नहस हो गया। मकरू के दो नन्हे बच्चों- कैकू और क्रैबी को छोड़ कर सभी काल के गाल में समा गये।
कहते हैं न कि ऊपरवाले ने जिनके तकदीर में जितने दिन लिख दिया, उतने दिन तो उन्हें जीना ही है। कैकू और क्रैबी को लगने लगा कि आज उन्हें एक नया जीवन मिला है। उन्होंने अपनी सलामती के लिए ईश्वर को धन्यवाद दिया। चूँकि कैकू बड़ा था, इसलिए क्रैबी को ढाँढस बंधाते हुए कहा- ” चिंता मत करना भाई। दुनिया में हमारे जैसे कई अनाथ बच्चे हैं। हम समझें, एक विपत्ति आई; और टल गयी। शुक्र करो कि हम बच गये। यूँ समझ लो कि माता-पिता और उन भाई-बहनों का हमारा साथ इतने ही दिनों के लिए था। ” अपने बड़े भाई कैकू की समझाइस से क्रैबी में हिम्मत आई। कैकू के और करीब आते हुए बोला- ” भैया ! मुझे छोड़कर कहीं नहीं जाना। ”
” तू कैसी बात करता है क्रैबी। मैं तुम्हें भला कैसे छोड़ सकता हूँ मेरे भाई। अब तो हम दोनों केवल एक दूसरे के लिए ही हैं। ऐसी बात कभी मत करना क्रैबी। ” कैकू की बातें सुन क्रैबी उससे लिपट गया। फिर दोनों एक साथ तैरते हुए बहुत दूर निकल गये। तभी उन्हें एक बिल दिखाई दिया। बिल के निकट गये। उन्हें बिल खाली व सुरक्षित लगा। वे बिल के अंदर घुस गये।
कैकू और क्रैबी अपने इस घर में बहुत खुश थे। वे अब जवान भी होने लगे थे। वैसे क्रैबी की कद-काठी कैकू से कम थी, क्योंकि उम्र में वह कैकू से बहुत छोटा था। पर दोनों भाई एक-दूसरे को बहुत चाहते थे। बड़ी आत्मीयता थी दोनों में। होना भी था, आखिर कोई तो नहीं थे उनके एक-दूसरे के सिवाय। कहीं भी जाना होता तो दोनों घर से एक साथ निकलते थे; और एक साथ ही वापस आते। हर खाने की चीज को मिल-बाँटकर खाते थे। यह भी सच है कि विपरीत परिस्थितियों ने दोनों भाईयों को उम्र से अधिक परिपक्व बना दिया था। अच्छे और बूरे समय में जीना सीख गये थे दोनों भाई। घर के आसपास कभी भी किसी तरह के खतरे का अहसास होता, झट से उनके कान खड़े हो जाते। बड़ी चालाकी से अपने घर में घुस जाते ; और दरवाजे को मिट्टी से ऐसे ढँक लेते कि किसी को पता तक नहीं चलता कि बिल के अंदर कोई रहता भी है। इस तरह कैकू और क्रैबी के सुख के दिन बीत रहे थे।
एक बार भीषण गर्मी के चलते नाली सुखने लगी। बहुत कम पानी रह गया। कैकू और क्रैबी अपने घर से कुछ ही दूरी पर आराम फरमा रहे थे। उन्हें नींद भी आने लगी थी। तभी उड़ता हुआ बक्कू बगुला आया। वह बड़ा धूर्त था। भरपेट मछली खाकर आ रहा था। बड़ा खुश था। अपने से छोटे जीव-जंतुओं को सताने में उसे बड़ा मजा आता था। उसकी नजर कैकू और क्रैबी पर पड़ी। उन्हें देखकर बक्कू के मुँह में पानी आ गया। वह अपनी धूर्तता पर उतर आया। देखा कि कैकू अपने दोनों दाढ़ों को जोड़कर सो रहा है। बक्कू को अच्छा मौका मिल गया। सोने पे सुहागा। कैकू के दोनों दाढ़ों को पकड़ लिया। कैकू हड़बड़ा गया। वह कुछ समझ नहीं पाया। तभी बक्कू के पंखों की आवाज से क्रैबी सतर्क हो गया। उसे माजरा समझ आ गया। देखा कि कैकू भैया को बक्कू बगुला ने पकड़ लिया है; और वह कुछ नहीं कर पा रहा है। फिर क्रैबी बिजली की तरह बक्कू पर टूट पड़ा। उसने अपने दोनों दाढ़ों से बक्कू के गरदन को पकड़ लिया। बक्कू क्रैबी के दाढ़े से अपनी गरदन को छुड़ा पाता; इससे पहले क्रैबी ने गरदन को पूरी तरह से कस लिया। बक्कू बगुला दर्द के मारे कराहने लगा। उसे दिन में तारे नजर आने लगे।
यह सब देख आँखों में आँसू लिये सरांगी नाम की मछली ने बक्कू बगुले को किसी तरह की सहायता करना उचित नहीं समझा, क्योंकि उसके सभी बच्चे भी बक्कू बगुले के भेंट चढ़ चुके थे।
— टीकेश्वर सिन्हा ‘गब्दीवाला’