कहानी – नई रोशनी
छोटी सी दुनिया में गुजर -वशर करने वाला सुरेश आज अपने बेटे राजू को इंजीनियरिंग कॉलेज में दाखिला करवाने पहुंचा ।वहां की चका – चौंध भरी दुनिया देख अनायास ही मन में विचार उठने लगा,कि मैं कुछ गलत तो नहीं कर रहा। इसी उधेड़ -बुन में झुकी पलके अपने आप से सवाल कर ही रही थी कि इतने में पास बैठी एक महिला पूछने लगी —
” क्या बात है आप यहां इतने परेशान क्यों हैं?” बेटे को छात्रावास में छोड़ने आए हैं क्या?
” जी, छोड़ने तो आया हूं।”
” हां, पहली बार तो दुःख जरूर होता है, पर आपको तो खुश होना चाहिए कि आपका बेटा इतनी बड़े कॉलेज में पढ़ने आया हैं।”
“हां , वह तो ठीक है, पर यहां का नजारा तो अपने आप में अद्भुत है !”
…” तो आप इस माहौल को लेकर परेशान हैं!”
…”जी , कुछ ऐसा ही समझिए । “
…” देखिए आज यह हर बड़े कॉलेज की कहानी है, मैं भी जब पहली बार यहां आई थी तो मुझे भी कुछ ऐसा ही महसूस हुआ था। लेकिन काफी जानकारी से पता किया कि आज के युग में यह सब बिल्कुल आम है।” अब मेरा ही देखिए ,मेरी तो दोनों ही बेटियां है। एक बेटी पिछले वर्ष ही अपनी पढ़ाई खत्म कर और मात्र तीन महीने के अंदर ही उसने शादी भी कर ली लेकिन अब उसकी नौकरी भी लग गई है। छोटी बेटी जिसके दो साल की पढ़ाई अभी भी बाकी है ,उसी से मिलने यहां आई हूं।”
..” वाह दोनों ही बेटियां!”
” जी इसीलिए तो सोच रही हूं आपका तो बेटा है फिर इतनी चिंता क्यों ?”
क्या कहूं, इससे मेरी कुछ ज्यादा ही अपेक्षाएं हैं इसीलिए चिंता हो रही है।
” समझी, आपकी चिंता भविष्य से लेकर घर बसाने तक की है।”आपके मन में लड़की वगैरा -वगैरा …
आप अभी से इतना मत सोचिए , रही ब्याह -शादी की बात ,तो यदि वह खुद कर भी ले ,तो क्या बुराई है। यहां माता-पिता की अनुमति के बिना बच्चों को बाहर जाने की इजाजत नहीं दी जाती ,तो वह व्याह आदि की बात करेंगे भी तो अपने साथ पढ़ने वालों से ही! उतनी ही पढ़ी-लिखी वह भी होगी।
यहां हम अपने बच्चों को पढ़ा कर उनका भविष्य तो बना ही रहे हैं ,साथ ही एक शिक्षित परिवार का गठन भी कर रहे हैं। आज के युग में परिवार में यदि दोनों ही उच्च कोटि की शिक्षा ग्रहण किए हो तो वह परिवार नहीं एक मंदिर होगा, क्योंकि आज समाज में जितनी भी सामाजिक कुरीतियों पैदा हो रही है वह सिर्फ पति-पत्नी के विचारों में भेदभाव के कारण ही पैदा हो रही हैं। दोनों में एक अलग ही सामंजस्य होगा। उनके बीच समान रूप से एक दूसरे के प्रति सम्मान की भावना होगी । जिससे आने वाली पीढ़ी को भी एक अलग ही मार्गदर्शन मिलेगा। तो क्यों ना हम अपनी सोच को ही विस्तृत करें और अपने इस पल का आनंद लें।
सब कुछ समझते हुए सुरेश मानो वक्त के थपेड़ों में खो गए ।
वह बचपन के उन दिनों में खो गये जब राज उनके साथ घंटो खेतों में चिलचिलाती धूप में काम करता और नंगे पैर आधा पेट नाश्ता और दोपहर के भोजन हेतु विद्यालय की ओर दौड़ जाता..!
माध्यमिक शिक्षा तक तो वे सरकारी सुविधाओं से ही उत्तीर्ण होता चला गया लेकिन उच्च शिक्षा के दौरान समर शास्त्री ने राज के लिए जो किया वह सचमुच काबिले तारीफ था ।उनके उत्साह और साहस के बल पर ही राज दसवीं में इतने अच्छे नंबर लाया और सरकार से स्कॉलरशिप आदि की सुविधा भी मिली । जिससे आज वह यहां तक पहुंचा और इतने बड़े कॉलेज में इस गरीब के बच्चे को पढ़ने की अनुमति मिली। हां,पर राज की मेहनत भी कुछ कम नहीं थी , आज उसकी खुशियों के वक्त मुझे भी खुश होकर उसका प्रोत्साहन बढ़ाना चाहिए।
इतने में पास बैठी महिला बोलने लगी– और आज तो मोबाइल का जमाना है उसकी हर पल की खबर रखना हमारा कर्तव्य भी होना चाहिए !
सुरेश अपने मन को समझा कर दिल में दर्द छुपाए वहां से चल दिया। हर पल उन्होंने पिता होने का फर्ज निभाया ।देखते ही देखते चार साल बीत गये। राज अपनी पढ़ाई पूरी कर घर आया ही था कि दो महीना के अंदर ही उसकी प्राइवेट कंपनी में नौकरी भी लग गई। पिता की खुशी का ठिकाना ना रहा ।
बातों ही बातों में उन्होंने राज से समर शास्त्री की बात बताई –
” इतने में वह बोलने लगा– “पापा मुझे याद है उनकी बात – बात पर जोर-जोर के डंडे, तो जीवन को समझने के लिए वह बड़ी-बड़ी बातें”। मेरी पढ़ाई के लिए अक्सर प्रोत्साहित करना। आज भी उनके स्वर मेरी कानों में गूंजते हैं।
एक तरफ जहां वह चरण स्पर्श किया , वहीं पिता मिठाई का डब्बा आगे बढ़ाते हुए – सर आपका बेटा। आपकी वजह से आज अपनी जिंदगी में सफल हो पाया । वरन् मेरी कहां हैसियत थी ,कि मैं इतना पढ़ा सकता !
‘ अरे वह सब तो ठीक है लेकिन राज की मेहनत भी माननी पड़ेगी! “मैंने तो सिर्फ उसका मार्गदर्शन किया , मेहनत तो उसकी अपनी थी”। दसवीं तक इस छोटे से विद्यालय में पढ़ने वाला नटखट सा बच्चा और आज…. सचमुच बहुत गर्व की बात है! लेकिन उसके बाद उसका इतने बड़े कॉलेज में पढ़ाना भी उसकी जिंदगी के लिए एक अहम पहल साबित हुआ।
आप सही ही कह रहे हैं उसे इंस्टिट्यूट के सभी शिक्षकों का भी बहुत-बहुत आभार जिन्होंने एक गरीब के लड़के को यहां तक पहुंचाया। पूरे गांव में मानो खुशियों की लहर दौड़ रही थी ।
तभी राज ने मौका देख अपनी दोस्त राखी की बात कही– सुरेश चौंक पड़े! बेटा यह तुम क्या बोल रहे हो
… पापा एक बार मिल तो लीजिए , बहुत अच्छी है वह!
इतने में सुरेश को तुरंत ही इंस्टिट्यूट में मिलने वाली महिला की बात स्मरण हो गई।
” इसी बात का डर था मुझे”!
…” पापा ,किस बात का डर” .
…”नहीं, कुछ नहीं, तुम नहीं समझोगे!
“… पापा हो तो आप मेरी शादी करवाऐगे ही!
…” तो राखी से एक बार मिल ही लीजिए” । वह हमारी बिरादरी की भी है,
…चलो तुम कहते हो तो ,!उसे कहना माता-पिता के साथ घर आने को…
.. वाह, जरूर पापा!
राखी अपने माता-पिता के साथ सुरेश के घर पहुंची। दोनों परिवारों में बातचीत हुई। राखी के व्यवहार ने पिता का भी दिल जीत लिया। उन्होंने फौरन ही विवाह के लिए हामी भर दी। इतने में राखी के पिता ने लेन-देन की बात करनी चाही कि राज के पिता कहने लगे कि” आप तो हमें साक्षात लक्ष्मी दे ही रहे हैं ,मुझे और कुछ नहीं चाहिए।”
राज और राखी की खुशी का ठिकाना ना रहा। विवाह संपन्न हुआ । दोनों बहुत खुश थे। यह देख सुरेश भी खुश रहते।
वर्षों पहले पत्नी के गुजर जाने के बाद सूने घर में आज मानो साक्षात लक्ष्मी स्वयं ही प्रकट हो गई थी। तभी रेखा का एक कंपनी से नौकरी के लिए आमंत्रण आ गया। यह देख राज बहुत खुश हुआ लेकिन राखी को अभी नौकरी की इच्छा नहीं थी। वह घर परिवार की सेवा करना चाहती थी। यह देख पिता का सिर गर्व से ऊपर उठ रहा था । राज के बहुत समझाने पर वह मैनेजर से बात कर ऑनलाइन कार्य करने के लिए तैयार हो गई। अब वह घर से ही कंपनी का कार्य भी करती और परिवार का भरपूर सेवा भी!
यह देख राज को बुलाकर उसके पिता कहने लगे– बेटा मुझे गर्व है, कि “मैं तेरा पिता हू।
“बस इतनी सी बात ,पापा” ” ” “बेटा यह इतनी सी बात नहीं है, जब तुम पापा बनोगे ना तब समझोगे,”
” पापा आप भी ना ….” दोनों जोर से हंस पड़े।
— डोली शाह