कविता
चाँद निकला बादलों से
सूखे दरख्तो सूखी नदियों ने
ओढ रखा हो धवल चाँदनी का कफ़न
जंगल कम ,नदियाँ प्रदूषित हो सूखी
मानो ऐसा लगता
मौत हो चुकी पर्यावरण की
धरा से आँखे चुराता चाँद
छुप जाता बादलों की ओट
निंदिया टूटी स्वप्न छूटा
भोर हुई
नई उम्मीदों से जंगल सजाने
नदियों की कलकल
चिड़ियों की चचहाहट ने दिया
पर्यावरण को पुनर्जन्म।
— संजय वर्मा “दृष्टि”