ये जिन्दगी
कभी जेठ की तपती धूप सी लगती
ये जिन्दगी,
कभी सर्दियों की गुनगुनी धूप लगती
ये जिन्दगी।
कभी काँटों में गुलाब का फूल सी
मुस्कुराती है ये जिन्दगी,
तो कभी डूबते सूरज सी
लगती है ये जिन्दगी।
कभी कल्पनाओं के सागर में
गोते लगाती है ये जिन्दगी,
तो कभी सूरज की पहली किरण सी
लगती है ये जिन्दगी।
कभी यथार्थ से दूर भागती है
हमारी ये जिन्दगी,
कभी मौत के भय
बदहवास सी दौड़ती ये जिन्दगी।
कभी चट्टान सी कठोर लगती
ये जिन्दगी
कभी मोम सी कोमल लगती
ये जिन्दगी ।
कभी मंजिल के बहुत करीब
लगती है ये जिन्दगी,
कभी एक -एक पल को
पीछे धकेलती ये जिन्दगी।
कभी कीचड़ में कमल सी खिलती है
ये जिन्दगी,
कभी धरती पर बोझ सी लगती है
ये जिन्दगी।
क्या कहूँ कैसी है ये जिन्दगी
जैसी भी है
बहुत अच्छी है ये जिन्दगी
ईश्वर का कृपा प्रसाद है जिन्दगी।
— कालिका प्रसाद सेमवाल