कविता

समय

समय काटना भी

एक कला है

हालाँकि

मज़े की बात ये है कि

इसे काटना नहीं पड़ता

बल्कि

ये ख़ुद ही कटता जाता है

और

इसी कटते जाने

या काटने के संघर्ष के बीच

उभर आते हैं कई

उत्तरविहीन प्रश्न !

और हम,

बीत जाने वाले हर दिन के साथ

उत्तर पा लेने की प्रतीक्षा में

एक और दिन रीत जाते हैं

दरअसल बीतने

या अनचाहे रीतने में

‘समय’ ही सबसे बड़ा निर्णायक

बनकर आता है

और सिखा जाता है कि

यहाँ कुछ भी

और कोई भी

स्थायी नहीं ! !

— सागर तोमर 

सागर तोमर

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