कहानी

कहानी – स्मरण

गंगा प्रसाद बचपन से ही एक रईस दबंग खानदान से ताल्लुक रखता था । वह पुरखों की बनाई हुई चाय बागान की ही थोड़ी बहुत देखभाल करता और इधर-उधर करके अपना जीवन व्यतीत करता। वह कम पैसों में ही बंजर पड़ी जमीन को जरूरतमंदो को समझा देता, लेकिन जिस तरह कहा जाता है कि बिना कुछ किये तो सोने की खदान भी खाली हो जाती है।
उसका बेटा लक्ष्मी लाल भी उन्हीं के नक्शेकदमों पर चलता रहा। सोचता किसी न किसी तरह आखिर पेट तो भर ही जाएगा। देखते -देखते परिवार बढ़ा और लोगों की जरूरत भी । अब बच्चों की पढ़ाई, घर की जरूरतें , राशन- पानी, सारी आवश्यकताओं को पूरा करना संभव नहीं हो पाता । तभी उसने एक छोटी सी पंक्ति खोली लेकिन वहां भी खरीदार से ज्यादा टाइम पास करने वालों का ही तांता लगा रहता।
एक दिन बेटा टिंकू अपने दोस्तों के साथ चाय बागान पहुंचा। चलते- चलते वह बागान के अंतिम छोर तक पहुंचने ही वाला था कि टिंकू ने कहा– यार! मैं तो थक गया और चलना मेरे बस में नहीं !
अन्य दोस्त ने कहा -“इतनी जल्दी !”
” हां फिर तो यदि पूरा बागान होता तो कभी जा ही ना पाते “।
” क्या? “
” हां , वह तो लोगों के बसने के कारण इतनी छोटी हो गई है। यह सारा जो दाढ़ी वालों की बस्ती है, पहले लक्ष्मी अंकल का ही था।”
” सचमुच “।
” हां,कभी अपने पापा से पूछ कर देखना, पहले जितनी जमीन अभी होती तो तुम लोगों की शायद पैसे रखने की भी जगह ना होती। वह तो दूसरों को देने के कारण खेती की जमीन छोटी हो गई और उर्वरता कम होकर दिन प्रतिदिन फसलें भी कम होती जा रही हैं।
टिंकू ने घर पहुंचते ही पूछा, “पापा हमारे बागान के उत्तर की तरफ जो मकान है क्या वह हमारी जमीन थी।”
” हां बेटा , तुम्हारे दादाजी बहुत दयालु थे, जब भी कोई उनसे अपना दुखड़ा कहता , वह उसे सही मान लेते और ऐसा करके ही उन्होंने पूरी जमीन का आधा हिस्सा औरों में ही बांट दिया है।”
” पापा फिर आपने कुछ कभी कहा नहीं?”
” क्या कहूं उन दाढ़ी वालों को, किसी से कहने भी जाओ तो कहते हैं हमें गंगा प्रसाद जी ने दिया है।”
” तो क्या उन्होंने कागजी दस्तावेजों पर भी अपना हाथ साध लिया है?”
” हां ,अपनी तरफ से उन्होंने थोड़ा बहुत जुगाड़ तो कर ही लिया है।”
इतने में एक कर्मचारी पूरे दिन का हिसाब किताब लेकर लक्ष्मी लाल जी के पास पहुंचा। बातों- ही -बातों में उसने बताया, ” इरफान के घर के आगे दो-तीन दिनों से एक पक्के मकान की नींव दी जा रही है । आज पूछा तो पता चला कि ” वहां एक मस्जिद के निर्माण की तैयारी चल रही है।”
” क्या?”
“हां साहब,
उनकी मंशा तो बढ़ती ही जा रही है। इन्हें रोकना होगा लेकिन ठंडे दिमाग से ! वह सैकड़ो वर्षों से रहते हैं । मैंने कुछ नहीं कहा लेकिन आज उन्हें रोकना होगा । “
अगले दिन प्रातःकाल लक्ष्मी लाल वहां पहुंचा । “अरे!साहब, आप अचानक यहां कैसे ! “
” नहीं बस यूं ही, बहुत दिन हो गए थे तो देखने आ गए।”
” लेकिन इरफान तुम यह यहां क्या बनवा रहे हो , पहले कच्चे मकान की जगह पक्के मकान तक तो कोई बात नहीं, लेकिन अब हम किसी धर्म स्थान की इजाजत नहीं देंगे।”
” क्यों यह हमारी जमीन है, हम चाहे जो भी करें ।”
“इरफान यह तुम भी बखूबी जानते हो और मैं भी…, देखो मैं कोई झगड़ा -झंझट नहीं चाहता, लेकिन मैं यहां कोई कम्युनल बिल्डिंग बनने नहीं दूंगा! ना कोई मंदिर, ना कोई मस्जिद, चाहे कुछ भी हो जाए।”
” लेकिन क्यों,”
” किसी और की जमीन पर रहने से वह अपनी नहीं हो जाती ।”
” देखते हैं हमें कौन रोकता है बनवाने से…” इरफान ने गुस्से में लाल -पीला होकर कहा।
टीकू ने जाकर पुलिस में केस दर्ज कर दिया जिससे मामला काफी गंभीर हो गया। नामौजदूगी की वजह से केस कोर्ट तक पहुंच गया। तारीख- पर- तारीख करते काफी वक्त गुजर गया।
पिता की उम्र देख अब टिंकू ही हर दिन पढ़ाई से बचे समय में ही चाय बागान देखने जाता।
इरफान की बेटी फराह भी इस बागान में पत्ती तोड़ने आती। उसका पतला, लंबा, छरहरा बदन रूप – रंग ,गठन, मानो देखते ही बनता था। टीकू भी उसे बड़े ध्यान से देखता। वह उससे बातें करने का प्रयास भी करता। लेकिन वक्त ने कभी साथ नहीं दिया। एक तरफ मालिक तो दूसरी तरफ कर्मचारी ….
एक दिन टिंकू कर्मचारियों को वेतन दे ही रहा था कि फराह कुछ देर से पहुंची। टिंकू ने मौका देख उससे पूछा” “आज इतनी देर से तुम?”

” हां ! घर का कुछ काम करने लगी थी, कोई बात नहीं…” पूरा दफ्तर सन्नाटा हो चुका था। इस सप्ताह कितने दिन काम किया था?”
” पूरे 6 दिन साहब। “
“लेकिन फराह, तुम्हें थोड़ा इंतजार करना होगा !”
“क्यों साहब ?”
“मैं ने भांगीलाल को छुट्टे लाने भेजा है। आता ही होगा !”
फराह की चुप्पी देख वह खुद को रोक नहीं पाया। बोला, “क्या बात है, इतनी चुप्पी! ?”
“कुछ तो बोलो अकेले हैं हम … “
“क्या बोलूं ?”
“कितनी पढ़ाई की है तुमने?
” दसवीं तक, फिर छोड़ दिया।”
” पढ़ने का मन नहीं करता साहब!”
“तुम चाय बागान में काम मत किया करो!”
“क्यों? “
“ऐसे ही।”
“अच्छा नहीं लगता ,तुम्हें काम करते देखकर..”
” लेकिन साहब केवल अब्बू की कमाई से भोजन -पानी, पढ़ाई का खर्च चलाना मुश्किल हो जाता है, जिससे मुझे भी काम करना पड़ता है ।”
टिंकू उसे टकटकी लगाए देखता रहा । फराह नजर झुकाए बैठी थी।
” क्यों लेकिन 12वीं तक की पढ़ाई के सारे खर्चे तो सरकार मुफ्त ही दे रही है सिर्फ विद्यार्थियों का मन होना चाहिए।..तुम कहो तो अब्बू से बात करूं?”
“करिए …लेकिन लगता नहीं कि अब्बू मानेंगे ।”
इतने में भांगीलाल छुट्टे.. लेकर पहुंचा। टिंकू ने फराह को ₹1200 थमाया।
मन ना होते हुए भी उसे जाना पड़ा। टिंकू मन ही मन चिंतित हुआ कि कुछ दिन पहले ही झगड़ा और फिर मैं यह सब क्या सोच रहा हूं ,कैसे बोलूंगा ।
फिर एक दिन वह कुछ दोस्तों के साथ फराह के घर पहुंचा । अब्बू अवाक होकर बोले, “अब यहां तुम! यहां क्यों आए हो !”
” यूं ही बस। चाचा जी! केरल सरकार ने चाय जनजाति की बालिकाओं को नयी योजना में 12वीं तक की शिक्षा केलिए बिल्कुल मुफ्त शिक्षा नीति प्रारंभ की है। यहां तक कि रहने- खाने की सुविधा भी उपलब्ध कराई जाएगी और यदि अच्छे नंबरों से पास किया तो मुफ्त स्कूटी तक प्रदान की जाएगी। सचमुच यदि हमारे गांव की लड़कियों को स्कूटी की सुविधा मिल गई तो कितना गौरव बढ़ेगा।
“फराह ने तो दसवीं तक पढ़ाई कर छोड़ ही दिया।”
“अब भी कुछ देर नहीं हुई , मन हो तो वह पढ़ सकती है।”
” हां बात तो तुम सही कह रहे , पता करके सारी स्कीम की जानकारी मुझे दो।”
“जी जरूर”
उसने उसका 11वीं में दाखिला भी करा दिया। अब टिंकू रोज प्रातःकाल चाय बागान से होकर ही कॉलेज जाता जिससे दोनों को एक दूसरे की आदत -सी पड़ गई।
कोर्ट में कार्रवाई के लिए तारीख पर तारीख। उधर दोनों के बीच रिश्ते को आगे बढ़ाने का वादा। अब टिंकू को अजहर के खिलाफ कोर्ट में गवाही केलिए खड़े होने में बड़ा अटपटा सा लगता। तभी एक दिन बातों ही बातों में फराह ने टिंकू से कहा -“-हमारे गांव में ऐसी कोई जगह नहीं जहां थोड़ी देर अकेले बैठकर समय व्यतीत किया जा सके ।”
“अरे! फरहा, समय है किसके पास!”
” फिर भी मन तो होता है , कभी कुछ वक्त अपने साथ, प्रकृति के साथ बिताने का।”
” है तो अपना चाय बागान !”
“अरे ! दोस्त! वहां भी तो हर टाइम कर्मचारी ही रहते हैं।”
“बात तो तुम्हारी सही ही है।”
टिंकू मन ही मन सोचता रहा इतने में फराह बोली -“क्यों ना हमारे अब्बू ने जहां मस्जिद के लिए निर्माण कार्य शुरू किया था वहीं उनकी गुजारिश से एक ओर पार्क का निर्माण कराया जाए ।”
“हां ,सचमुच “,
“लेकिन टिंकू इस बात को तुम पहले अब्बू को बोलना ! “
टिंकू ने अगले दिन ही अरफान के पास अपनी इच्छा प्रकट की,”चाचा जी अब बाबूजी अक्सर अस्वस्थ ही रहते हैं और अकेले मुझसे केस -फौजदारी होगा नहीं।”
” तो क्या कहना चाहते हो ?”
“चाचा जी क्यों ना हम उसी जमीन पर एक छोटे से पार्क का निर्माण करायें, जिससे कुछ देर तो इंसान प्रकृति के बीच रह सके, अपने आप से बातें कर सके; और जगह जमीन लेकर क्या लड़ना- झगड़ना।सब को तो खाली हाथ ही जाना होगा।”
इतने में फराह चाय लेकर पहुंची- “अब्बू चाय।”
चाय पीकर उठते हुए पिंटू ने कहा, “चाचा जी मैं चलता हूं लेकिन मेरी बातों पर विचार जरूर कीजिएगा, क्योंकि गांव में एक पार्क यदि हो जाए तो पूरे गांव का विकास भी होगा। ” यह बात ज्यों ही इरफ़ान ने घर पर बताई, “बताएं ?” फराह फौरन बोली । “अब्बू यह बहुत अच्छ अच्छा विचार है , पार्क होगा तो बाहर से लोगों का आना-जाना भी होगा । संस्कृति का आदान-प्रदान भी होगा।अब्बू ना मत करो! प्लीज ,यह तो गोल्डन ऑपच्यरुनिटी है ,अब्बू अपनी स्मृति बनाने के लिए।…
सोचिए ना ,मस्जिद बनती तो सिर्फ वहां हमारे ही धर्म के लोग आते लेकिन पार्क में तो हर धर्म समुदाय के लोग आएंगे । सबके बीच आपकी प्रतिष्ठा बढ़ेगी । “
इरफान बेटी की बातों को ना नहीं कर सका। बोला, “अच्छा तुम लोगों की मर्जी ….।” फराह ने फौरन यह सूचना टिंकू को दी। टिंकू ने भी अपने घर पर सारी बातें बताई ।
वह अगले दिन ही प्रातः काल बागान पहुंच टिंकू ने पूछा, “इरफान साहब! क्या सोचा मेरी बातों पर? “
” चलो ठीक है। लेकिन मैं ने तो मस्जिद के लिए इस जमीन पर एन ओ सी लिया था। अब कोर्ट की कागजी कार्रवाई सिर्फ तुम्हें ही करनी होगी।”
” आप हां तो कीजिए, बाकी सब हम देख लेंगे”।
” लेकिन एक शर्त है क्या इसमें मेरा भी नाम रहेगा,”
” अच्छा चलिए वह भी मान लिया।” टिंकू हंस कर वहां से चल दिया। वह घर आकर ही फौरन कॉलेज पहुंचा । फराह से मिलकर बोला, “हमारी मेहनत रंग ला गई ।..तुम्हारे अब्बू ने मुझे पार्क के लिए कागजी कार्रवाई तैयार करने को बोला है।” यह सुन दोनों के चेहरे पर एक सांत्वना की खुशी की लहर दौड़ गई। “सचमुच कभी सोचा नहीं था कि अब्बू मान जाएंगे। इसलिए तो कहा जाता है प्रयास ही सफलता की पूंजी है ,
सच्ची अब हमारे रिश्ते भी प्रयास के बदौलत ही सफल होंगे “।
हां इतना कह के दोनों जोर से हँस पड़े।
— डोली शाह

डोली शाह

1. नाम - श्रीमती डोली शाह 2. जन्मतिथि- 02 नवंबर 1982 संप्रति निवास स्थान -हैलाकंदी (असम के दक्षिणी छोर पर स्थित) वर्तमान में काव्य तथा लघु कथाएं लेखन में सक्रिय हू । 9. संपर्क सूत्र - निकट पी एच ई पोस्ट -सुल्तानी छोरा जिला -हैलाकंदी असम -788162 मोबाइल- 9395726158 10. ईमेल - [email protected]