अच्छा ही गुजरा
जैसा भी ये गुजरा, अच्छा ही गुजरा,ये साल।
कुछ फूल की तरह, कुछ खार सा था, ये साल।
यूँ तो निबाहेंगे ही हम साथ, इस नए साल का,
माजी की हसीं तस्वीर सा,याद रहेगा, ये साल।
कुछ हम ने की थी खतायें, कुछ कुछ मजा भी,
जिंदगी की धूप छाँव का दे गया तजुर्बा, ये साल।
बहारों की मानिन्द किया था इस्तकबाल कभी,
हम शान ओ शौकत से करेंगे विदा,ये साल।
गुजिश्ता साल का, हर पल था नया तूफां लिए,
“सागर” गोया के हो मनचला परिन्दा, ये साल।
ख्वाबों के अन्जुमन जैसी है ये काव्य राँगोली,
काव्य राँगोली के फूलों से सजता, रहा ये साल।
— ओमप्रकाश बिन्जवे “राजसागर”