कविता

राम

राम है मंदाकिनी शुचितत्त्व की जो है स्रवक।
राम है सौदामिनी चैतन्य की जो है दमक॥
राम है खुशबू चमन की फूल बनकर बिहँसती
राम वह संगीत-श्रव आत्मा सुने जिसकी गमक॥

राम है वह सन्तुलन जिसमें नहीं गति की सनक।
राम है विश्रांतता शिवलिंग की झिलमिल चमक॥
राम है निर्वासना स्मृति चतुर्दश लोक की
राम है ऋषि आशना तवक्कुल* सोनी चहक॥

राम शबरी की प्रतीक्षा अहिल्या का धैर्य चिर।
राम केवट का निहोरा चरण रज की रति रुचिर॥
राम अनसूया का वत्सल अत्रि की भक्ति विमल
शरभंग का मकरन्द लोचन योग चिंतन उदित्वर॥

राम है वह अख्य जिसमें पुष्प खिलते बोध के।
तू बावरा भँवरा रसोन्मद ढूँढता पल मोद के॥
आमोद और प्रमोद जग के क्षणिक हैं, शाश्वत नहीं
राम हैं शाश्वत रसायन जहँ घुले सब रस भोग के॥

राम का गुणगान कर प्रभु-सदन खुल जाएगा।
राम के संचर जगत में जो छिपा है दिख जाएगा।
राम है नित प्रस्त्रवण ज्योतिर्मयी आनन्द का
कर राम का अवधान तू भी राममय हो जायगा॥

(*तवक्कुल अरबी भाषा का एक शब्द है, जो ईश्वर पर निर्भरता या “ईश्वर की योजना परभरोसा” की इस्लामी अवधारणा है।)

— मदन गोपाल गुप्ता “अकिंचन”

मदन गोपाल गुप्ता 'अकिंचन'

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