गीत
मैं अकेला दीप जलता, कौन मेरी जलन जाने ?
घोर तम हर ओर से मुझको डराता ।
रुख हवाओं का मुझे आंखें दिखाता।
दशायें प्रतिकूल थी ,लड़ता रहा मैं,
तिमिर मेरे तेज को कैसे मिटाता ?
किस तरह लड़ता रहा मै,सिर्फ मेरा बदन जाने ।
मैं अकेला दीप …………………
फूल हूँ मैं, मधुकरो ने किया जूठा ।
प्रेम का उपहार मैं सबसे अनूठा ।
मैं हमेशा मनाने का बना साधन ,
जब किसी साधक से उसका दैव रूठा।
शूल थे हर ओर मेरे, कौन उनकी चुभन जाने ?
मैं अकेला दीप …………………….
वेदना का भार लादे चल रहा हूँ ।
मैं प्रलय की गोद में ही पल रहा हूँ।
समय से पहले मैं पुरखा हो गया हूँ,
आज ही में आने वाला कल रहा हूँ।
स्वप्न टूटे,पीर उनकी, सिर्फ मेरे नयन जानें ।
मैं अकेला दीप…………………………
— डा. दिवाकर दत्त त्रिपाठी