हिसार यात्रा
हरियाणा प्रांत का एक शहर है हिसार और यह एक प्राचीन शहर भी है । नई दिल्ली से करीब 164 किमी दूर है । आपको बता दें कि हिसार लोहा उत्पादक भी है और यह भारत का सबसे बड़ा जस्ती लोहा उत्पादक है । यह शहर राजकीय पशु फार्म के लिए भी विशेष विख्यात है । यहां अच्छी नस्ल के सांड विकसित किए जाते हैं ।
हिसार की स्थापना सन 1354 ई. में तुगलक वंश के शासक फिरोजशाह तुगलक ने की थी । यहां हिंदी, हरियाणवी, अंग्रेजी भाषाएं बोली, पढ़ी, लिखी व समझी जाती हैं । यहां गर्मी में गर्मी व ठंडी में बहुत ठंडी होती है । हिसार पढ़ा- लिखा व समृद्ध शहर है । चौधरी चरण सिंह हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय बहुत ही प्रतिष्ठित विश्वविद्यालय है । पर्यटन के लिए भी हिसार आकर्षण का प्रमुख केंद्र है । यहां सम्राट अशोक के काल का एक स्तंभ, कुषाण वंश के सिक्के व अन्य अवशेष भी मिल चुके हैं ।
यहां की ऐतिहासिक इमारतें भी मन को बहुत आकर्षित करती हैं । गुजरी महल, लाट की मस्जिद, हिसार ए फिरोज नामक दुर्ग प्रमुख हैं । वहीं आधुनिक काल की सबसे आकर्षित कोई चीज हिसार में देखने लायक है तो वह जिंदल टावर है । इस टावर पर एक साथ 1500 लोग खड़े होकर पूरे शहर को देख सकते हैं ।
ऐसे सुंदर शहर की यात्रा का अवसर मुझे दिसंबर 2023 में प्रथम बार मेरे प्रेरणा स्रोत व आत्मिक सहयोगी आदरणीय डॉक्टर नरेश कुमार सिहाग एडवोकेट व डॉक्टर विकास शर्मा जी की कृपा से मिला ।
मैं 23 दिसंबर को आगरा कैंट से सामान्य श्रेणी के डिब्बे में सफर करते हुए शाम को हजरत निजामुद्दीन रेलवे स्टेशन पर पहुंच गया । वहां से बस पड़कर अपने जीजाजी के यहां उनके रूम पर पहुंच गया । खाना खाया और देर रात तक उनसे बातें करता रहा । सुबह जल्दी ही भिवानी के लिए निकल पड़ा, परंतु कोई ट्रेन न मिलने के कारण रोहतक जाना पड़ा । इस बीच आदरणीय डॉक्टर नरेश जी से मेरा संपर्क बना रहा । अगर मैं रात को भिवानी पहुंच जाता तो डॉक्टर नरेश जी के यहां ही रात्रि विश्राम करता । रोहतक पहुंचते -पहुंचते काफी देर हो गई । मैंने अपनी यात्रा की जो रुपरेखा बनाई थी वह पूरी तरह से बदल गई । मैंने डॉक्टर नरेश जी को काफी इंतजार करवाया, लेकिन उन्होंने इसकी कोई शिकायत मुझसे नहीं की । रोहतक से हांसी बस स्टैंड पर पहुंचा वहीं पर मुझे डॉक्टर साहब मिले । मेरी चिंता खत्म । अब आगे का सफर मेरे लिए बहुत सरल था, क्योंकि मेरे साथ थे एक महान व्यक्तित्व डॉक्टर नरेश कुमार सिहाग एडवोकेट । शाम को हम हिसार पहुंच गये । कुछ ही कदम पैदल चले कि डॉक्टर विकास शर्मा जी अपनी गाड़ी लिए मिल गये । उनके साथ एक सांस्कृतिक कार्यक्रम का लुफ्त उठाया । देर शाम को खाना पीना खाया और हम पहुंच गये बाल भवन के हॉस्टल में । यह चौधरी चरण सिंह हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय के परिसर में ही स्थित है । हमारा कार्यक्रम 24 -25 दिसंबर को था । 24 दिसंबर की शाम को कार्यक्रम से फ्री होकर हमने घूमने का मन बनाया । हम 10-12 लोग जिनमें स्त्री, पुरुष, बच्चे शामिल थे, निकल चुके हिसार शहर को देखने । अफसोस हम जहां भी गये । दरवाजे बंद ही मिले, क्योंकि हम देरी से जो निकले थे । यह हमारी भूल कहिए या कार्य की व्यस्तता । खैर हम आपस में हंसी- ठिठोली करते हुए अपने निवास पर आ गये ।
अगले दिन कार्यक्रम बहुत ही आनंददायी रहा । रात्रि को हम वहां से निकल पड़े । डॉ. विकास शर्मा जी ने हमें यानी कि मुझे व डॉक्टर नरेश जी को भिवानी शहर में छोड़ दिया । अब मुझे रात्रि डॉक्टर नरेश जी के यहां ही गुजारनी थी । वैसे हमारा कार्यक्रम पहले ही बन चुका था । डॉक्टर नरेश जी ने अपने निवास पर गरमा गरम खाना खिलाया और फिर मुझे जितना संभव था, भिवानी शहर घुमाया । इस बीच उन्होंने अपना एक मित्र भी बुला लिया था । रास्ते में एक दुकान से गुड़ की मिठाई (मूंगफली वाली गजक) का एक पैकेट मुझे घर ले जाने के लिए दिया । घूम-घाम कर डॉक्टर साहब मुझे मेरे विश्राम स्थल पर छोड़कर चले गये। आपको बता दूं कि मेरा यह रात्रि निवास स्थल डॉक्टर साहब का द्वितीय घर था । पहली मंजिल किताबों से लबा लब। काफी देर रात तक मैं किताबों की दुनिया में सैर सपाटा करता रहा ।
अगली सुबह जल्दी ही मेरी गाड़ी थी, इसलिए डॉक्टर साहब चाय नाश्ते के साथ हाजिर हो गये । वे मुझे एक्टिवा गाड़ी (दो पहिया मोटरसाइकिल) से रेलवे स्टेशन तक छोड़ने आये । इस बीच उन्होंने कुछ रुपए भी मुझे दिये। यह उनका मेरे प्रति भारी स्नेह ही था । वैसे वे हमेशा ही मेरा सहयोग करते रहते हैं । उनका स्नेह मुझे छात्र जीवन से ही मिलना प्रारंभ हो गया था । सबसे पहले हमारा परिचय आर्य समाजी पत्र -पत्रिकाओं से हुआ था । हम पत्र मित्र बन गये और तब से हमारी मित्रता यों ही अनवरत ईश्वर कृपा से चल रही है ।
मैं भारी मन से विदा लेकर दिल्ली की तरफ निकल पड़ा । दोपहर को दिल्ली पहुंच गया । इस बीच मुझे डॉक्टर सविता चढ्डा जी से भी भेंट करनी थी । उनके निवास तक पहुंचने के लिए काफी परेशानी उठानी पड़ी । जब एक बार रास्ता समझ में आ गया तो फिर सारी दिक्कत छू मंतर । उनसे मिलने के बाद मन काफी हल्का हो गया । डॉक्टर सविता जी बहुत कोमल हृदय वाली हैं ।
इसी दिन रात्रि को अपने जीजाजी राजेश के यहां रात्रि विश्राम किया और अगली सुबह निकल पड़ा आगरा के लिए…।
— मुकेश कुमार ऋषि वर्मा