स्वागत है गणतन्त्र में अपने
लोक फेल है, तन्त्र फेल है, कल पुर्जे और यन्त्र फेल हैं,
स्वागत है गणतंत्र में अपने, बड़े बड़े यहाँ मन्त्र फेल हैं।
गली-गली, नुक्कड़-नुक्कड़ में, सारे नेता बने हुए हैं,
जनता के ही वोट से चुनकर, जनता पर ही तने हुए हैं,
बैल भी जनता ही कोल्हू की, जनता ही कोल्हू का तेल है,
स्वागत है गणतंत्र में अपने, बड़े बड़े यहाँ मन्त्र फेल हैं।
कहते जय भारत माता की, माँ को ही फिर लूट रहे हैं,
क्या नेता क्या अफ़सर बाबू, जमकर चाँदी कूट रहे हैं,
खुलकर करो खरीदारी, के बेईमानी की लगी सेल है,
स्वागत है गणतंत्र में अपने, बड़े बड़े यहाँ मन्त्र फेल हैं।
चोरी ऊपर सीनाज़ोरी, नए दौर का नया चलन है,
फुला के सीना चलें धूर्त, बेशर्मी को सर्वत्र नमन है,
नमन है चोर लुटेरों को बस, सच की खातिर बनी जेल है,
स्वागत है गणतंत्र में अपने, बड़े बड़े यहाँ मन्त्र फेल हैं।
बेईमानी और मक्कारी, आभूषण और ताज बने हैं,
जिसकी जितनी पहुँच है ऊपर, उसके उतने काज बने हैं,
जिसे भी मौका मिला यहाँ पर, उसी ने खेला नया खेल है,
स्वागत है गणतंत्र में अपने, बड़े बड़े यहाँ मन्त्र फेल हैं।
अपनी अपनी डफली अपने राग, सुनाते चले जा रहे,
दीवारों को छोड़ के, इंसानों पे चूना मले जा रहे,
गिरा सभी को आगे बढ़ने, की सारी ये रेलपेल है,
स्वागत है गणतंत्र में अपने, बड़े बड़े यहाँ मन्त्र फेल हैं।
— मुकेश जोशी ‘भारद्वाज’