नानी का निधन हो गया
सूर्यस्त के क्षितिज पर – खुशबू कलियाँ नहीं खिलीं।
तुम्हारी कमी तो फूलों को भी महसूस हुई – क्यों पता नहीं।
पक्षी की थाली में पक्षियाँ अब नहीं आ रहे हैं।
अकेले जानवर हमेशा की तरह नहीं होते।
पहले की तरह घर में – दीपक नहीं जल रहा है।
पैटर्नवाले भूमि पर – पत्तियाँ झड़कर गन्दी हो गयीं हैं।
खोलें दरवाजे़ और खिड़कियाँ – अब बंद हो चुका है।
घर में खुशियाँ – चोर ले गये।
मुँह पर हमेशा मुस्कान रहती थी।
छुपी मिठाइयों से पेट भर गया।
हमेशा मेरा मन बन लिया।
नानी मुझे मेरी माँ जैसी लगती थी।
शयद थोड़ा सा तेल – कभी ओर कुछ नहीं।
लेकिन दवाइयाँ नहीं लेता – तुम्हारा शव।
बैठक कमरा रूप का दृश्य – मेरा दिल भी रुक गया।
मेरी अपनी की दुनिया – जैसी टूटकर गिरा।
पहले स्कूल कपडे़ के साथ – मेरा छोटा सा गुलाब
पहली पौशाक और दो मेंज़ – अलमारी के अंदर में था।
अभी भी खोज रहा है – उस स्नेह के लिए एक रूपक है।
अभी भी आँसुओं से खोज रहा हूँ।
— एम.के. पारमी सत्यांगना