कविता

अपने तो अपने होते हैं

 मर -मर कर देख लिया 

जी-जी कर भी देख लिया 

अपनों का स्नेह देख लिया 

अपनों का अपनत्व भी देख लिया

चंचल मन मेरा पगलाया

मन की पीड़ा ने बहुत रुलाया 

दर-दर भटका चैन कहीं न पाया 

फिर अपनों ने ही गले लगाया 

जीना हो या मरना, धन ही काम आता

धन का जादू सबको भरमाता

साधु -संत हों या गृहस्थ हों धन सबके काम आया 

धन बिन अच्छा- बुरा कोई कार्य पूर्ण न हो पाया

मां के स्नेह से डरकर यमराज भाग जाये

पिता के आशीर्वाद से कंगाली छूमंतर हो जाये

जगत में कुछ भी कर लेना पर अपनों का साथ न छूटे

अपने तो अपने होते हैं, ये नाजुक रिश्ते कभी न टूटे

— मुकेश कुमार ऋषि वर्मा

मुकेश कुमार ऋषि वर्मा

नाम - मुकेश कुमार ऋषि वर्मा एम.ए., आई.डी.जी. बाॅम्बे सहित अन्य 5 प्रमाणपत्रीय कोर्स पत्रकारिता- आर्यावर्त केसरी, एकलव्य मानव संदेश सदस्य- मीडिया फोरम आॅफ इंडिया सहित 4 अन्य सामाजिक संगठनों में सदस्य अभिनय- कई क्षेत्रीय फिल्मों व अलबमों में प्रकाशन- दो लघु काव्य पुस्तिकायें व देशभर में हजारों रचनायें प्रकाशित मुख्य आजीविका- कृषि, मजदूरी, कम्यूनिकेशन शाॅप पता- गाँव रिहावली, फतेहाबाद, आगरा-283111