दुर्गेश के दोहे
रंग बिरंगे लोग सब, बदलें हर पल रंग।
देख जगत की चाल को, विनोद अत्यधिक दंग।
फाल्गुन आया झूम कर, करने को गुलजार।
रंगों के त्योहार में, रंग गए नर नार।
अपनी अपनी डफलियां, अपने अपने राग।
सुध ले अपने आप की, वहम नींद से जाग।
खोना पाना छोड़ कर, दिल से कर लो याद।
प्रीत से नाता कर लो, छोड़ो सभी फसाद।
धूप सुनहरी खिल रही, खिल गए हैं पलाश।
मदहोश से फाल्गुन की, पूरी हुई तलाश।
— विनोद वर्मा दुर्गेश