शिवधाम पन्याला
द्वादश ज्योतिर्लिंग के नाम से मशहूर शिव धाम पन्याला हिमाचल प्रदेश के बिलासपुर जिले के अंतर्गत तहसील घुमारवीं में पड़ता है। यह पवित्र स्थान घुमारवीं सरकाघाट रोड पर है। घुमारवीं से लगभग आठ किलोमीटर तथा कुठेड़ा से लगभग तीन किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। आज यह शिवधाम लोगों में आस्था का केंद्र बन गया है। इस मंदिर के बारे में एक बहुत प्रचलित कथा है। कहा जाता है कि पहले सड़क की दूसरी तरफ यह प्राचीन मंदिर होता था जिसको कि कामदानाथेश्वर के नाम से जाना जाता था। जब घुमारवीं से सरकाघाट सुपर हाईवे सड़क का निर्माण कार्य शुरू हुआ तब वहां पर कार्यरत ठेकेदार और कामगारों को एक छोटा सा शिवलिंग मिला। उन्होंने शिवलिंग को वहां से उठाकर सड़क के दूसरी तरफ रख दिया। मंदिर के पुजारी बाबा धर्मवीर कहते हैं कि पहले यहां बहुत छोटा सा मंदिर होता था l सड़क निर्माण के कारण इसका निर्माण सड़क के दूसरी तरफ किया गया। लोगों के सहयोग से भव्य मंदिर का निर्माण किया गया। पहले मंदिर में एक ही शिवलिंग होता था। सन 1995 में इस मंदिर का जीरोंद्वार किया गया और यह मंदिर धीरे-धीरे लोगों की आस्था का केंद्र बनता गया। बाबा धर्मवीर जी ने बताया कि यह बात सन 2003 की है कि एक गाड़ी में लोग 11 शिवलिंगों को लेकर जा रहे थे। वह जैसे ही इस स्थान पर पहुंचे तो आगे भारी बारिश के कारण सड़क मार्ग अवरुद्ध हो चुका था और उनको वहीं पर रुकना पड़ा। क्योंकि सड़क मार्ग को खुलने में दो से तीन दिन लगे थे इसलिए वे लोग इन शिवलिंगों को यहीं पर छोड़कर वापस चले गए। इस कारण इन 11 शिवलिंगों को भी इस मंदिर में स्थापित कर दिया गया और तब से इस मंदिर को द्वादश ज्योतिर्लिंग के नाम से भी जाना जाता है। आज के समय में यह शिव धाम लोगों की आस्था का ऐसा केंद्र बन गया है कि जो भी यात्री इधर से गुजरते हैं वह इस मंदिर में अवश्य ही अपना शीश झुकाते हैं और भगवान भोलेनाथ का प्रसाद लेकर ही जाते हैं। यह 12 ज्योतिर्लिंग इस प्रकार से हैं काशी विश्वनाथ, बैद्यनाथ, नागेश्वर, भीमाशंकर, रामेश्वर ,ममलेश्वर, त्रंबकेश्वर, घृष्णेश्वर , मल्लिकार्जुन, महाकालेश्वर, केदारनाथ और सोमनाथ। जहां एक और मंदिर के सौंदर्यकरण के लिए शिव मंदिर सेवा दल कमेटी का गठन किया गया है वहीं दूसरी तरफ दूर-दूर से श्रद्धालु अपना शीश नवाने इस द्वादश ज्योतिर्लिंग शिव धाम पनयाला में आते हैं। मंदिर के प्रांगण की खूबसूरती देखते ही बनती है। मंदिर में 12 शिवलिंगों के अलावा भगवान श्री कृष्णा, श्री गणेश, हनुमान की सुंदर मूर्तियां भी स्थापित की गई है। यहां के पुजारी बताते हैं कि पहले स्थान पर घना जंगल होता था। स्थानीय लोग इस पहाड़ी को फेटी धार के नाम से भी जानते हैं। साथ ही पन्याला में एक नाला भी बहता है जिसमें की सोने के कण भी पाए जाते हैं। सड़क मार्ग बनने के कारण अभी यह मंदिर अपने आप में एक खास पहचान रखता है। वैसे तो मंदिर में सुबह शाम नियमित रूप से पूजा अर्चना की जाती है लेकिन त्योहारों में और विशेष दिनों में यहां पर भंडारा भागवत कथा इत्यादिक आयोजन भी होता रहता है। मंदिर के साथ ही छोटे से टीले पर भगवान शिव और पार्वती की मूर्तियां रखी गई है जिसको कैलाश पर्वत का नाम दिया गया है और वहां पर कैलाश परिक्रमा के लिए अलग-अलग रास्ता बनाया गया है। इस मंदिर के प्रांगण में और कैलाश परिक्रमा के आसपास रुद्राक्ष, अर्जुन, जामिया पाम, साइकस पाम,फॉक्सटेल पाम, बिल्व, कदंब इत्यादि पेड़ लगाए गए हैं जो कि मंदिर की सुंदरता को चार चांद लगाते हैं। भगवान भोलेनाथ की करतल ध्वनि के गानों से गूंजता हुआ मधुर संगीत सबका मन मोह लिया है। महाशिवरात्रि के दिन तो इस मंदिर में सुबह से ही भक्तों की इतनी कतार लग जाती है कि शाम तक वह कतार खत्म होने का नाम ही नहीं लेती है। भोलेनाथ के श्रद्धालु बड़ी तन्मयता के साथ भोलेनाथ के दर्शनों का जयकारे लगा लगाकर इंतजार करते हैं। इस दिन यहां पर भव्य भंडारे का आयोजन भी किया जाता है। कहा जाता है कि भगवान भोलेनाथ के द्वादश ज्योतिर्लिंगों को स्पर्श करने से पूजा का विशेष महत्व हो जाता है जिससे कि मनुष्य के भौतिक, दैविक और आध्यात्मिक तापों की निवृत्ति होती है। इस मंदिर में प्रत्येक सोमवार को भगवान शिव की विशेष पूजा अर्चना एवं कथा का आयोजन किया जाता है और भक्तों को प्रसाद के रूप में फलाहार इत्यादि दिया जाता है।
— कैप्टन (डॉ.) जय महलवाल