दो बात
दो बात न कह पाया
तुमसे दूर जाते-जाते……….
था पास मैं तुम्हारे
पर पास ना पाया।
था गर्दिशों में खूद
और वक्त का सताया।।
साहिल भी चल पड़ा
मेरे पास आते-आते……. दो बात न कह पाया……
ये नजरे तुम्हें तलाशती
भटकी है दर बदर।
टूटने लगी है आशा
प्यासा है समंदर।।
चंद लम्हों का फासला
तुम्हें पास पाते पाते…… दो बात न कह पाया….…
थी दीवानगी पाने की
जिसे भूल न पाया।
तन्हाइयों के सायो ने भी
मुझे कम ना सताया।।
निकाला है दम तड़प के
तेरी गली में आते जाते……. दो बात न कह पाया…..
बने पलकों पे निशा
सुखकर आंख के मोती ।
हे दर्द कितना गहरा
बताती आंख ये रोती ।।
जागी है नींद मेरी
यादों में सोते-सोते…… दो बात न कह पाया..
— दिनेश बारोठ ‘दिनेश’