निर्णय
“नाम करेगा रोशन मेरा नन्हा राज दुलारा…” गाना गुनगुनाती हुई नीलम जल्दी जल्दी घर के काम निपटा रही थी। नहाने के बाद चाय लेकर रिशु के कमरे में आ बैठी थी। सामने दीवार पर ट्राफी लिए हुए अनूप कुमार की तस्वीर देखकर ख्यालो में खो गयी थी कि सब्जी वाले की आवाज़ गूँजी- “सब्जी ले लो, तोरई, गाजर, मटर, आलू ले लोओओss!”
“भैया रुको, मैं आती हूँ!” भागती हुई आकर बालकनी से बोली।
“बेटा रिशु! चल साथ में। ज्यादा सब्जी लेनी है न, तू उठा ले आना।”
“जी मम्मा, आप चलिए मैं आता हूँ। बस थापर सर द्वारा दी गयी कामयाबी के टिप्स लिख लूँ!”
“जल्दी आना!”
“हाँ मम्मा, आप के खरीद चुकने से पहले आपके पास होऊँगा।”
“टमाटर कैसे दिए भैया।”
“चालीस रूपये में दीदी जी।”
“इतने महँगे! न, न, तीस रुपये में दो तो बोलो, हमें तीन चार किलो लेना है। राष्ट्रिय कबड्डी टीम में मेरे बेटे के सेलेक्शन होने की ख़ुशी में कल पार्टी है न।”
“अरे वाह दीदी जी, फिर तो आप मेरी तरफ से फ्री में ले लीजिये।” सब्जी वाला खुश होकर बोला।
अचानक सर-सर कहते सुन ठेल से नजर उठाते ही नीलम ने रिशु को सब्जी वाले के कदमो में झुका हुआ देखा।
“रिशु..?” नीलम हतप्रभ हो बोली।
“मम्मा तुम नहीं जानती इन्हें? यही तो हैं मेरे अदृश्य गुरु! गोल्ड मेडिलिस्ट, जिनकी मैं दिन रात पूजा करता हूँ। आज ये मुझे मिल गए, अब साक्षात इनसे ही सीखूँगा मैं।”
“बोलिये न थापर सर, आप सिखायेंगे न मुझे कबड्डी में कामयाबी के ट्रिक?”
नीलम की ख़ुशी अब काफूर हो गयी थी। उसके सामने तराजू का पलड़ा नहीं बल्कि बेटे का वर्तमान और भविष्य ऊपर-नीचे हो रहा था।
अचानक नीलम के माथे पर बल पड़ गये। सब्जी वाले से बोली- “भैया! टमाटर बस आधा केजी ही देना।”
— सविता मिश्रा ‘अक्षजा’