मुक्तक
वो सतरंगी पंख लिये दिल से जुड़ जाती है
जिधर-जिधर उसका मन करता वो उड़ जाती है
यार प्यार की तितली के बारे में क्या बोलूँ
कब दिल के गुलशन में आती कब उड़ जाती है
— अर्चना पांडा
वो सतरंगी पंख लिये दिल से जुड़ जाती है
जिधर-जिधर उसका मन करता वो उड़ जाती है
यार प्यार की तितली के बारे में क्या बोलूँ
कब दिल के गुलशन में आती कब उड़ जाती है
— अर्चना पांडा