कटघरा
सभ्य समाज, कटघरे मे खड़ा है।
आज रोटी का सवाल सबसे बड़ा है।
कहीं धूप, कहीं बे मौसम बरसात,
मौसम का मिजाज, जरा बिगड़ा है।
लाज लुटे,बम फटे, अजी उन्हें क्या ?
खुदगर्ज है इन्सां, चिकना घड़ा है।
शहादतें हैं झूठी, इंसाफ कौन करे,
कानून की आंखों में परदा पड़ा है।
उफ न करेंगे, हम आहें न भरेंगे,
दिल पे अपने, तीर ही ऐसा गड़ा है।
उसे मिटाने का, हमे मिटने का शौक,
हम कम नहीं, वो भी जिद पे अड़ा है।
— ओमप्रकाश बिन्जवे ” राजसागर “