कविता
ठहर जाते है पग
सुकून पाने को
थके उम्र के पड़ाव
निढाल हुए मन
पूछ परख का रास्ता
राहें भूलने अब लगी
इंतजार की।
रौशनी चकाचोंध
धुंधलाए से नैंन
कहाँ खोजे वैसी देह मूर्ति
जो हो गई अब हमसे दूर।
— संजय वर्मा “दृष्टि”
ठहर जाते है पग
सुकून पाने को
थके उम्र के पड़ाव
निढाल हुए मन
पूछ परख का रास्ता
राहें भूलने अब लगी
इंतजार की।
रौशनी चकाचोंध
धुंधलाए से नैंन
कहाँ खोजे वैसी देह मूर्ति
जो हो गई अब हमसे दूर।
— संजय वर्मा “दृष्टि”